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भूमिका पर चले गए और वहां शिव को प्रसन्न करके नया व्याकरण शास्त्र प्राप्त किया- 'प्राप्त व्याकरणं नवम् । कात्यायन छात्रावस्था में और उसके बाद भी पाणिनि के प्रतिद्वन्द्वी थे। पाणिनि के व्याकरण ने ऐन्द्र व्याकरण की जगह ले ली। नन्दवंश के सम्राट् से पाणिनि की मित्रता होगई और सम्राट ने उनके शास्त्र को सम्मानित किया। (पा. का. भारतवर्ष पृ० १५)।
२. बौद्ध संस्कृत साहित्य के 'मंजुश्री-मूलकल्प' नामक ग्रन्थ में लिखा हैपुष्पपुर में शूरसेन के अनन्त नन्द राजा होगा। वहां मगध की राजधानी में अनेक विचारशील विद्वान् राजा की सभा में होंगे। राजा उनका धन से सम्मान करेगा। बौद्ध ब्राह्मण वररुचि (कात्यायन) उसका मन्त्री होगा। राजा का परम मित्र पाणिनि होगा (पा० का० भारतवर्ष पृ० १५)।
३. राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इस अनुश्रुति की परम्परा में ही यह उल्लेख किया है कि पाटलिपुत्र में शास्त्रकार परीक्षा हुआ करती थी। उस परीक्षा में उववर्ष, वर्ष, पाणिनि, पिंगल, व्याडि, वररुचि और पतंजलि ने उत्तीर्ण होकर यश प्राप्त किया। ये सब आचार्य शास्त्रों के प्रणेता हुए हैं।
टि०- “श्रूयते च पाटलिपुत्रे शास्त्रकारपरीक्षा, अत्रोपवर्षवर्षाविह पाणिनिपिङ्गलाविह व्याडि:, वररुचिपतञ्जली इह परीक्षिता: ख्यातिमुपजग्मुः (पा० का० भारतवर्ष पृ० १५)।
उपवर्ष के भाई आचार्य वर्ष पाणिनि के गुरु थे। पाणिनि प्रसिद्ध शास्त्रकार हैं। अत: उन्होंने अपना नया व्याकरणशास्त्र पाटलिपुत्र की शास्त्रकार-परीक्षा में प्रस्तुत किया होगा। छन्दशास्त्र के प्रणेता पिंगल पाणिनि के अनुज (छोटे भाई) थे। दक्ष गोत्र में उत्पन्न व्याडि पाणिनि के मामा थे। व्याडि ने सूत्र शैली में व्याकरणशास्त्र पर अपना, 'संग्रह' नामक ग्रन्थ लिखा था जो पंतजलि के समय विद्यमान था। पंतजलि ने इसकी प्रशंसा में लिखा है- 'शोभना खलु दाक्षायणस्य संग्रहस्य कृति' (महा० २।३।६६) अर्थात् दाक्षायण व्याडि की 'संग्रह' नामक रचना बड़ी सोहणी है। चीनी यात्री___ चीनी यात्री श्यूआन् चुआङ् (६४५ ई० में) स्वयं ‘शलातुर' गये थे। उन्होंने पाणिनि के विषय में इस प्रकार लिखा है
“ऋषियों ने अपने-अपने मत के अनुसार अलग-अलग व्याकरण लिखे। मनुष्य इनका अध्ययन करते रहे किन्तु जो मन्दबुद्धि थे वे इनसे काम चलाने में असमर्थ थे। फिर मनुष्यों की आयु भी घटकर सौ वर्ष रह गई थी। ऐसे समय में ऋषि पाणिनि का जन्म हुआ। जन्म से ही सब विषयों में उनकी जानकारी बढ़ी-चढ़ी थी। समय की मन्दता और अव्यवस्था को देखकर पाणिनि ने साहित्य और बोलचाल की भाषा के अनिश्चित और अशुद्ध प्रयोगों एवं नियमों में सुधार करना चाहा। उनकी इच्छा थी कि
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