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________________ ३६ अर्थः- पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि शब्दरूपाणि जसि परतो विकल्पेन सर्वनामसंज्ञकानि भवन्ति व्यवस्थायाम् असंज्ञायां च गम्यमानायाम्। उदा०-(पूर्व) पूर्वे। पूर्वा: । (परः) परे । परा: । (अवर: ) अवरे । अवरा: । (दक्षिण) दक्षिणे । दक्षिणा: । (उत्तर: ) उत्तरे। उत्तराः । (अपरः) अपरे। अपरा:। (अधर: ) अधरे । अधरा: । आर्यभाषा - अर्थ - (पूर्व०) पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर और अधर शब्दों की (जसि) जस् प्रत्यय परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (सर्वनामानि ) सर्वनाम संज्ञा होती है, यदि वहां (व्यवस्थायाम्) व्यवस्था और (असंज्ञायाम्) असंज्ञा हो । पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०- - (पूर्व) पूर्वे । पूर्वा: । पहले। (पर) परे । पराः। दूसरे । (अवर) अवरे । अवराः । इधरवाले। (दक्षिण) दक्षिणे । दक्षिणाः । दक्षिणवाले। (उत्तर) उत्तरे। उत्तराः । उत्तरवाले। (अपर) अपरे । अपराः । दूसरे । (अधर) अधरे । अधराः । निचले । सिद्धि - (१) पूर्वे | पूर्व + अस्। पूर्व+शी । पूर्व+ई। पूर्वे। यहां पूर्व शब्द की सर्वनाम संज्ञा होने से 'जस: शीं ( ७ 1१1१७ ) से जस् के स्थान में 'शी' आदेश होता है। (२) पूर्वा: । पूर्व+जस् । पूर्व+अस् । पूर्वा: । यहां पूर्व शब्द की सर्वनाम संज्ञा न होने से पूर्ववत् 'जस्' के स्थान में 'शी' आदेश नहीं होता है। विशेष- व्यवस्था का क्या लक्षण है ? 'स्वाभिधेयापेक्षावधिनियमो व्यवस्था अपने अभिधेय की अपेक्षा से अवधि (मर्यादा) के नियम को व्यवस्था कहते हैं। यहां व्यवस्था में ही पूर्व आदि शब्दों की सर्वनाम संज्ञा होती है, अन्यत्र नहीं। जैसे 'दक्षिणा इमे गायका:' यहां दक्षिण शब्द व्यवस्था का द्योतक नहीं है, अपितु प्रवीण अर्थ का वाचक है, अतः यहां सर्वनाम संज्ञा नहीं होती है। यहां 'असंज्ञायाम्' का ग्रहण इसलिए किया गया है कि संज्ञा विशेष में पूर्व आदि शब्दों की सर्वनाम संज्ञा न हो। जैसे 'उत्तराः कुरव:' यहां उत्तर शब्द कुरु की संज्ञा विशेष है । अतः यहां सर्वनाम संज्ञा नहीं होती है। स्वशब्द: -- (६) स्वमज्ञातिधनाख्यायाम् । ३४ । प०वि० - स्वम् १ ।१ अज्ञातिधनाख्यायाम् ७ । १ । स०-ज्ञातिश्च धनं च ते ज्ञाति धने, तयोः ज्ञातिधनयो: । ज्ञातिधनयोराख्या इति ज्ञातिधनाख्या । न ज्ञाति-धनाख्या इति अज्ञातिधनाख्या, तस्याम्-अज्ञातिधनाख्यायाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व - षष्ठीतत्पुरुषगर्भितनञ्तत्पुरुषः) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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