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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् वचनम्-आवचनम्। मुखनासिकम् आवचनं यस्य स मुखनासिकावचन: (समाहारद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि: ) । १८ अर्थ:-मुखनासिकावचनो वर्णोऽनुनासिक -संज्ञको भवति । उदा०-अभ्र आँ अपः। गभीर आँ उग्र पुत्रे । चन आँ इन्द्रः । आर्यभाषा - अर्थ - (मुखनासिकावचन:) मुख और नासिका से उच्चारण किये जानेवाले वर्ण की (अनुनासिक: ) अनुनासिक संज्ञा होती है। उदा०-अभ्र आँ अपः । गभीर आँ उग्र पुत्रे । चन आँ इन्द्रः । सिद्धि-आँ- यहां 'आङोऽनुनासिकश्छन्दसि' (६ । १ । ११६ ) से आ को अनुनासिक हो जाता है। इसका उच्चारण मुख सहित नासिका से किया जाता है। अतः यह अनुनासिक है। सवर्णसंज्ञा (१) तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम् । ६ । प०वि०-तुल्यास्यप्रयत्नम् १ । १ सवर्णम् १ । १ । स०-आस्यं मुखम्। आस्ये भवमिति आस्यम् । आस्ये प्रयत्न इति आस्यप्रयत्नः । तुल्य आस्यप्रयत्नो यस्य तत् तुल्यास्यप्रयत्नम्। (सप्तमीतत्पुरुषगर्भितबहुव्रीहि: ) । अर्थ:- येषां वर्णानां तुल्य आस्ये प्रयत्नस्ते परस्परं सवर्णसंज्ञका भवन्ति । उदा०-दण्डाग्रम्। खट्वाग्रम् । दधीन्द्रः । मधूदकम् । पितॄणम् । आर्यभाषा-अर्थ- (तुलास्यप्रयत्नम् ) जिन वर्णों का आस्य = मुख में तुल्य प्रयत्न है, उनकी परस्पर (सवर्णम्) सवर्ण संज्ञा होती है। उदा०-दण्डाग्रम्। दण्ड का अग्रभाग। खट्वाग्रम्। खाट का अग्रभाग । दधीन्द्रः । दही का स्वामी । मधूकदम् । मधुर जल । पितॄणम् । पिता का ऋण । सिद्धि - (१) दण्डाग्रम् । दण्ड + अग्रम् । दण्डाग्रम्। यहां दोनों अकारों का मुख में होनेवाला विवृत प्रयत्नतुल्य है । अत: उनकी परस्पर सवर्ण संज्ञा है । सवर्ण संज्ञा होने से 'अकः सवर्णे दीर्घः' (६ । १ । १०९) से दीर्घ एकादेश हो जाता है। (२) खट्वा+अग्रम्। खट्वाग्रम्। दधि+इन्द्र । दधीन्द्र । मधु+उदकम्। मधूदकम् । पितृ+ऋणम्। पितॄणम्। यहां भी 'दण्डाग्रम्' के समान ही कार्य जानें । विशेष- वर्णों के आभ्यन्तर और बाह्य भेद से दो प्रकार के प्रयत्न होते हैं । सवर्ण संज्ञा में आभ्यन्तर अर्थात् मुख के अन्दर होनेवाले प्रयत्नों का ग्रहण किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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