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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-अगस्त्यस्य गोत्रापत्यम्-आगस्त्यः। अगस्त्यस्य बहूनि अपत्यानि-अगस्तय: । कुण्डिन्या गोत्रापत्यम्-कौण्डिन्यः । कुण्डिन्या बहूनि अपत्यानि-कुण्डिनाः।
आर्यभाषा-अर्थ-(बहुषु) बहुत अर्थों में वर्तमान (आगस्त्यकौण्डिन्ययो:) आगस्त्य और कौण्डन्य के (गोत्रे) गोत्रापत्य अर्थ में विहित प्रत्यय का (लुक्) लोप होता है और उनके स्थान में यथासंख्य (अगस्तिकण्डिनच) अगस्ति और कुण्डिनच् आदेश होते हैं, यदि तिन-एव) उसी गोत्रप्रत्यय से उनके बहुत्व का कथन किया गया हो।
उदा०-अगस्त्यस्य गोत्रापत्यम्-आगस्त्यः। अगस्त्य ऋषि का पौत्र 'आगस्त्यः' कहाता है। अगस्त्यस्य बहूनि अपत्यानि-अगस्तयः। अगस्त्य ऋषि के बहुत पौत्र 'अगस्तयः' कहाते हैं। कुण्डिन्या गोत्रापत्यं कौण्डिन्यः। कुण्डिनी ऋषिका का पौत्र कौण्डिन्यः' कहाता है। कुण्डिन्या: बहूनि अपत्यानि-कुण्डिनाः । कुण्डिनी ऋषिका के बहुत पौत्र 'कुण्डिनाः' कहाते हैं।
सिद्धि-(१) अगस्तयः । अगस्त्य+डस्+अण्+जस् । अगस्ति+o+अस् । अगस्तयः ।
यहां अगस्त्य प्रातिपदिक से ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' (४।१।११४) से गोत्रापत्य अर्थ में 'अण्' प्रत्यय होता है। 'अगस्त्य' के बहुत पौत्र अर्थ की विवक्षा में इस सूत्र से इस 'अण्' प्रत्यय का लुक् हो जाता है और अगस्त्य' शब्द के स्थान में 'अगस्ति' आदेश हो जाता है।
(२) कुण्डिना: । कुण्डिनी+डस्+य+जस् । कुण्डिनच्+o+अस् । कुण्डिनाः ।
यहां कुण्डिनी प्रातिपदिक से गोत्रापत्य अर्थ में 'गर्गादिभ्यो यञ् (४।१।१०५) से यञ् प्रत्यय होता है। कुण्डिनी' के बहुत पौत्र अर्थ की विवक्षा में इस सूत्र से यञ्' प्रत्यय का लुक् हो जाता है और उसके स्थान में 'कुण्डिनच्’ आदेश होता है।
(३) कुण्डिनी शब्द मध्योदात्त है। कुण्डिनच् शब्द में चकार का अनुबन्ध चितोऽन्तोदात्तः' (६।१।१६२) अन्तोदात्त स्वर के लिये किया गया है। सुप्प्रत्ययस्य
(१४) सुपो धातुप्रातिपदिकयोः ७१। प०वि०-सुप: ६१ धातु-प्रातिपदिकयो: ६।२।
स०-धातुश्च प्रातिपदिकं च ते-धातुप्रातिपदिके, तयो:धातुप्रातिपदिकयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०-लुक् इत्यनुवर्तते।
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