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________________ १२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् तत्काल का ग्रहण करते हैं। अत: यहां उदात्त, अनुदात्त, स्वरित तथा निरनुनासिक और सानुनासिक भेद से छ: प्रकार के अकार, एकार और ओकार की गुण संज्ञा होती है। गुणवृद्धिस्थानम् (३) इको गुणवृद्धी।३। प०वि०-इक: ६१ गुण-वृद्धी १।२। स०-गुणश्च वृद्धिश्च ते गुणवृद्धी (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) अनु०-'वृद्धिरादैच्' इत्यस्माद् वृद्धि:, 'अदेङ् गुणः' इत्यस्माच्च गुण इत्यनुवर्तते। अन्वय-गुणवृद्धिभ्यां गुवृद्धी इकः । अर्थ:-गुणवृद्धिभ्यां शब्दाभ्यां यत्र गुणवृद्धी विधीयते तत्र 'इक:' इति षष्ठ्यन्तं पदमुपस्थितं भवति । उदा०-गुण:-(इ) जेता। नेता। (उ) होता। पोता। (ऋ) कर्ता। हर्ता। वृद्धि: (इ) अचैषीत् । अनैषीत्। (उ) अस्तावीत्। अलावीत् । (ऋ) अकार्षीत् अहार्षीत्। ___ आर्यभाषा-अर्थ-यहां वृद्धिरादैच्’ से वृद्धि और 'अदेङ् गुणः' से गुण पद की अनुवृत्ति आती है। (गुणवृद्धिभ्याम्) गुण और वृद्धि शब्दों के द्वारा जहां (गुणवृद्धी) गुण और वृद्धि का विधान किया जाता है, वहां (इक:) यह षष्ठयन्त पद उपस्थित होता है। इससे शास्त्र में इक के स्थान में गुण और वृद्धि होती है। उदा०-गुण-(इ) जेता। जीतनेवाला। नेता। ले जानेवाला। (उ) होता। हवन करनेवाला। पोता। पवित्र करनेवाला। (ऋ) कर्ता। करनेवाला। हर्ता। हरनेवाला। वृद्धि-(इ) अचैषीत्। उसने चुना। अनैषीत्। वह ले गया। (उ) अस्तावीत् । उसने स्तुति की। अलावीत्। उसने काटा। (ऋ) अकार्षीत् । उसने किया। अहार्षीत् । उसने हरण किया। सिद्धि-(१) जेता। जि+तृच् । जि+तृ । जेतृ+सु । जेता यहां जि जये (भ्वादि) धातु से पूर्ववत् तृच् प्रत्यय करने पर सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३ १८४) से जि धातु के इक् को गुण होता है। इसी प्रकार ‘णी प्रापणे (भ्वा०3०) धातु से नेता' शब्द सिद्ध होता है। (२) होता। हु+तृच् । हु+तृ। होतृ+सु। होता। यहां हु दानादनयोरादाने चेत्येके' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् तृच् प्रत्यय करने पर सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से हु' धातु के इक् को गुण होता है। इसी प्रकार पूत्र पवने (क्रया उ०) धातु से पोता' शब्द सिद्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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