________________
गुणसंज्ञा
प्रथमाध्यायस्य प्रथमः पादः
(२) अदेङ् गुणः ।२।
प०वि० - अदेङ् १ ।१ गुण: १1१
स०-अत् च एङ् च एतयोः समाहार:- अदेङ् (समाहारद्वन्द्वः) । तः परो यस्मात् स तपरः, तादपि परस्तपरः । ( बहुव्रीहि: ).
अर्थः-तपराणाम् अकार-एकार- ओकाराणां गुणसंज्ञा भवति । उदा०- (अकार) कर्ता । हर्ता । (एकार: ) जेता । नेता । (ओकार: ) होता । पोता ।
११
आर्यभाषा - अर्थ - (अदेङ् ) अ+त्+एङ् अर्थात् तपर अकार, एकार और ओकार की (गुण:) गुण संज्ञा होती है।
उदा००- (अकार) कर्त्ता । करनेवाला। हर्ता । हरनेवाला। (एकार) जेता । जीतनेवाला । नेता। ले जानेवाला। (ओकार) होता। हवन करनेवाला । पोता। पवित्र करनेवाला ।
सिद्धि - (१) कर्त्ता । कृ+तृच् । कर्+तृ । कर्तृ+सु । कर्त् अनङ्+स् । कर्तन्+स् । कर्तान्+स्। कर्तान्+०। कर्ता । यहां डुकृञ् करणे ( तनादि० उ० ) धातु से 'वुल्तृचौं' (३ । १ । १३३) से तृच् प्रत्यय करने पर 'सर्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से 'कृ' के ऋ को 'अ' गुण होता है और वह 'उरण् रपरः' (१।१।५१) से रपर हो जाता है- अर् । यहां 'ऋदुशनस्०' (७/१/९४ ) से कर्तृ के ऋ को अनङ् आदेश, 'सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौं (६/४/८) से नकारान्त की उपधा को दीर्घ 'हल्ङन्याब्भ्यो दीर्घात् ० ' ( ६ 1१/६८) से सु का लोप और नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य' (८ 12 1७) से नू का लोप होता है । कर्त्ता । करनेवाला । इसी प्रकार हृञ् हरणे (भ्वा०3०) धातु से हर्ता' शब्द सिद्ध होता है।
Jain Education International
(२) जेता । जि+तृच् । जे+तृ । जेतृ+सु । जेत अनङ्+सु । जेतन्+स् । जेतान्+स् । जेतान्+०। जेता। यहां जि जये (भ्वा०3०) धातु से पूर्ववत् तृच् प्रत्यय और 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' से जि' के 'ई' को ए गुण होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । इसी प्रकार 'णी' प्रापणे' (भ्वा०3०) धातु से नेता' शब्द सिद्ध होता है।
(३) होता । हु+तृच् । हो+तृ । होतृ+सु । होत् अनङ्+स् । होतन्+स् । होतान्+0 । होता। यहां 'हु दानादनयोरादाने चेत्येकें' (अदा० प० ) धातु से पूर्ववत् तृच् प्रत्यय करने पर सार्वधातुकार्धधातुकयो:' ( ७।३।८४) से हु के 'उ' को 'ओ' गुण होता है। शेष कार्य पूर्ववत् हैं। इसी प्रकार पूञ पवने (क्रया० उ० ) धातु से पोता' शब्द सिद्ध होता है । विशेष- अदेङ् पद में अ और एङ् के मध्य में तू लगाया गया है। अतः पूर्वोक्त विधि से अ और एङ् दोनों तपर हैं। ये तपर होने से 'तपरस्तत्कालस्य' (१1१1७०) से
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org