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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-देवसेनम् । देव+आम्+सेना+सु । देवसेन+सु । देवसेनम् । यहां देव और सेना शब्द का 'षष्ठी (२/२/८) से षष्ठी तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से समस्तपदविकल्प से नपुंसकलिङ्ग है । नपुंसकलिङ्ग के पक्ष में 'ह्रस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य' (१।२।४७) से सेना शब्द को ह्रस्व होता है। नपुंसकलिङ्ग में 'अतोऽम्' (७/२/२४) से 'सु' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। जहां नपुंसकलिङ्ग नहीं होता वहां-देवसेना। ऐसे ही यवसुरम्, यवसुरा आदि। ४७४ द्वन्द्वस्तत्पुरुषश्च (१०) परवल्लिङ्गं द्वन्द्वतत्पुरुषयोः । २६ । प०वि०- परवत् अव्ययपदम्, लिङ्गम् ११ द्वन्द्व तत्पुरुषयोः ७ । २ । स०-परस्य इव इति परवत् (तद्धितवृत्तिः) । द्वन्द्वश्च तत्पुरुषश्च तौ द्वन्द्वतत्पुरुषौ तयोः द्वन्द्वतत्पुरुषयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अर्थः-द्वन्द्वे तत्पुरुषे च समासे परवत् = उत्तरपदस्येव लिङ्गं भवति । उदा०-(१) द्वन्द्व:-कुक्कुटश्च मयूरी च ते कुक्कुटमयूर्यौ । मयूरी च कुक्कुटश्च तौ मयूरीकुक्कुटौ । (२) तत्पुरुष:- अर्द्ध पिपल्या इति अर्द्धपिप्पली । अर्द्ध कौशातक्या इति अर्द्धकौशातकी । आर्यभाषा-अर्थ- (द्वन्द्वतत्पुरुषयोः) द्वन्द्व और तत्पुरुष समास में (परवत्) उत्तरपद के समान (लिङ्ग) लिङ्ग होता है। उदा०-(१) द्वन्द्व-कुक्कुटश्च मयूरी च ते कुक्कुटमयूर्यो । एक मुर्गा और एक मोरणी दोनों। मयूरी च कुक्कुटश्च तौ मयूरीकुक्कुटौ । एक मोरणी और एक मुर्गा दोनों । (२) तत्पुरुष- अर्धं पिप्पल्या इति अर्धं पिप्पली । छोटी पीपल का आधा भाग । अर्धं कौशातक्या इति अर्धं कौशातकी । तोरी का आधा भाग । सिद्धि - (१) कुक्कुटमयूर्यौ । कुक्कुट+सु+मयूरी+सु । कुक्कुटमयूरी + औ । कुक्कुटमयूर्यौ । यहां द्वन्द्व समास में पूर्वपद कुक्कुट शब्द पुंलिङ्ग और उत्तरपद मयूरी शब्द स्त्रीलिङ्ग है। इस सूत्र से समस्तपद उत्तरपद मयूरी के समान स्त्रीलिङ्ग होता है। (२) अर्द्धपिप्पली । अर्ध+सु+पिप्पली+ङस् । अर्धपिप्पली+सु। अर्धपिप्पली। यहां अर्ध और पिप्पली शब्द का 'अर्ध नपुंसकम् ' (२ 12 12 ) से एकदेशितत्पुरुष समास है। यहां पूर्वपद अर्ध शब्द नपुंसक और उत्तरपद पिप्पली शब्द स्त्रीलिङ्ग है। इस सूत्र से समस्तपद उत्तरपद पिप्पली के समान स्त्रीलिङ्ग होता है। इस पाद के प्रारम्भ में द्वन्द्व समास में एकवद्भाव का विधान किया है। एकवद्भाववाले द्वन्द्व समास का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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