________________
अथ प्रथमाध्यायस्य प्रथमः पादः
गुणवृद्धिप्रकरणम् वृद्धि-संज्ञा
(१) वृद्धिरादैच्।१। प०वि०-वृद्धि: ११ आदैच् १।१।
स०-आत् च ऐच् च एतयो: समाहार आदेच् (समाहारद्वन्द्वः) । त: परो यस्मात् स तपरः, तादपि परस्तपर: (बहुव्रीहि: समास:)
अर्थ:-तपराणाम् आकार-ऐकार-औकाराणां वृद्धि-संज्ञा भवति ।
उदा०-(आकार:) आश्वलायन:। शालीय: । मालीय: । (एकार:) ऐतिकायन: । (औकार:) औपगवः।
__ आर्यभाषा-अर्थ-(आदेच्) आ+त्+ऐच अर्थात् तपर आकार, ऐकार और औकार की (वृद्धि:) वृद्धि संज्ञा होती है।
उदा०-(आकार) आश्वलायन: । अश्वलायन का पुत्र । शालीयः । शाला में रहनेवाला गृहस्थ। मालीयः । माला में रहनेवाला पुष्प। (एकार) ऐतिकायन: । इतिक का पुत्र । (औकार)-औपगवः । उपगु का पुत्र।
सिद्धि-(१) आश्वलायन: । अश्वल+फक् । आश्वल्+आयन। आश्वलायन+सु। आश्वलायन: । यहां अश्वल शब्द से अपत्य अर्थ में नडादिभ्यः फक्' (४।१।८८) से फक् प्रत्यय, आयनेय०' (७।१।२) से फ के स्थान में आयन-आदेश और किति च'(७।१।११८) से आदि वृद्धि होती है।
(२) शालीय: । शाला+छ। शाल्+ईय । शालीय+सु । शालीयः । यहां शाला शब्द के आदि में वृद्धिसंज्ञक आकार के होने से उसकी वृद्धिर्यस्याचामादिस्तद् वृद्धम्' (१।१।७३) से वृद्ध संज्ञा होकर वृद्धाच्छः' (४।१।११४) से छ प्रत्यय होता है। छ के स्थान में 'आयनेय०' (७।१।२) से ईय-आदेश होता है। ऐसे ही माला शब्द से-मालीयः ।
(३) ऐतिकायन: । इतिक+फक् । ऐतिक्+आयन। ऐतिकायन+सु। ऐतिकायनः । यहां इतिक शब्द से अपत्य अर्थ में नडादिभ्यः फक्' (४।११८८) से फक् प्रत्यय, 'आयनेयः' (७।१।२) से फ के स्थान में आयन-आदेश और किति च' (७।२।११८) से आदि वृद्धि होती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org