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________________ ४५३ द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः समीपवाचिनाम् (अध्ययनतः) (४) अध्ययनतोऽविप्रकृष्टाख्यानाम्।५। प०वि०-अध्ययनत: तृतीया-अर्थेऽव्ययपदम्। अविप्रकृष्टाख्यानाम् ६।३। स०-न विप्रकृष्टा इति अविप्रकृष्टा, अविप्रकृष्टा आख्या येषां तेऽविप्रकृष्टाख्या:, तेषाम्-अविप्रकृष्टाख्यानाम् (नञ्तत्पुरुषगर्भितबहुव्रीहिः)। अनु०-एकवचनं द्वन्द्व इति चानुवर्तते। अन्वय:-अध्ययनतोऽविप्रकृष्टाख्यानां द्वन्द्व एकवचनम् । अर्थ:-अध्ययननिमित्तेन अविप्रकृष्टाख्यानां समीपाख्यानां शब्दानां द्वन्द्वसमास एकस्यार्थस्य वाचको भवति। उदा०-पदकाश्च क्रमकाश्च एतेषां समाहार: पदकक्रमकम् । क्रमकाश्च वार्तिकाश्च एतेषां समाहार: क्रमकवार्तिकम् । आर्यभाषा-अर्थ-(अध्ययनत:) अध्ययन के निमित्त से (अविप्रकृष्टाख्यानाम्) समीपता के वाचक शब्दों का (द्वन्द्व:) द्वन्द्व समास (एकवचनम्) एक अर्थ का वाचक होता है। उदा०-पदकाश्च क्रमकाश्च एतेषां समाहारः पदकक्रमकम् । पदपाठ और क्रमपाठ करनेवालों का समूह । क्रमकाश्च वार्तिकाश्च एतेषां समाहारः क्रमकवार्तिकम् । क्रमपाठ और संहितापाठ करनेवालों का समूह । वृत्ति संहिता। सिद्धि-पदकक्रमकम् । पद+बुन्। पद+अक । पदक+जस् । पदकाः । यहां अध्ययन अर्थ में क्रमादिभ्यो वुन्' (४।२।६१) से वुन् प्रत्यय है। ऐसे ही क्रम शब्द से भी अध्ययन अर्थ में पूर्ववत् वुन्-प्रत्यय है। जो वेद के पदों का अध्ययन करनेवाले हैं वे पदक' कहाते हैं और जो वेद के क्रम का अध्ययन करनेवाले हैं वे क्रमक' कहाते हैं। पद के पश्चात् क्रम का अध्ययन करना चाहिये अत: इनकी अध्ययन निमित्त से अविप्रकृष्टता समीपता है। इनके द्वन्द्व समास में इस सूत्र से एकवचन का विधान किया गया है। ___ जहां अध्ययन के निमित्त से समीपता नहीं होती है वहां द्वन्द्व समास में एकवचन नहीं होता है-पितापुत्रौ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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