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________________ द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः चरणवाचिनाम् (३) अनुवादे चरणानाम्।३। प०वि०-अनुवादे ७१ चरणानाम् ६।३ । अनु०-एकवचनं द्वन्द्व इति चानुवर्तते। अन्वय:-चरणानां द्वन्द्व एकवचनमनुवादे। अर्थ:-चरणवाचिनां शब्दानां द्वन्द्वः समास एकस्यार्थस्य वाचको भवति, अनुवादे गम्यमाने। उदा०-कठाश्च कालापाश्च एतेषां समाहार: कठकालापम् । उदगात् कठकालापम् । कठाश्च कौथुमाश्च एतेषां समाहार: कठकौथुमम् । प्रत्यष्ठात् कठकौथुमम् । आर्यभाषा-अर्थ-(चरणानाम्) शाखाध्यायी वाचक शब्दों का (द्वन्द्व:) समास (एकवचनम्) एक अर्थ का वाचक होता है (अनुवाद) यदि वहां अनुवाद=अनुकथन (प्रशंसा) प्रकट हो। उदा०-कठाश्च कालापाश्च एतेषां समाहार: कठकालापम् । उदगात् कठकालापम् । कठ और कालाप चरण शाखा के अध्ययन करनेवाले संघ ने उन्नति की। कठाश्च कौथुमाश्च एतेषां समाहार: कठकौथुमम् । प्रत्यष्ठात् कठकौथुमम् । कठ और . कौथुम चरण शाखा के अध्ययन करनेवाले संघ ने प्रतिष्ठा प्राप्त की। सिद्धि-कठकालपम् । कठ+जस्+कालाप+जस् । कठकालाप+सु। कठकालापम्। यहां चार्थे द्वन्द्वः' (२।२।२९) से समाहार द्वन्द्व समास है और इस सूत्र से कठ और कालाप चरण शाखा के अध्ययन करनेवालों के द्वन्द्व समास में एकवचन है। ऐसे ही-कठकौथुमम्। विशेष-(१) अनुवाद-शब्द प्रमाण से भिन्न प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से विज्ञात अर्थ का शब्दों से कीर्तन (प्रशंसा) करना अनुवाद कहाता है। (२) चरण-चरण शब्द वैदिकशाखा के विद्यालय का वाचक है। यह शब्द शाखा अर्थ में मुख्य और शाखा का अध्ययन करनेवाले पुरुष अर्थ में गौण है। यहां गौण अर्थ का ग्रहण किया गया है। (३) ऋग्वेद की २१, यजुर्वेद की १०१, सामवेद की १००० तथा अथर्ववेद की ९ इस प्रकार वेदों की ११३१ शाखायें हैं। ये सब आज उपलब्ध नहीं हैं, कुछ शाखायें मिलती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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