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________________ ४३५ द्वितीयाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-शतस्य प्रतिदीव्यति देवदत्त: । सहस्रस्य प्रतिदीव्यति यज्ञदत्त: । आर्यभाषा-अर्थ-(तदर्थस्य) द्यूतक्रीडा और क्रय-विक्रय व्यवहार अर्थवाली (उपसर्गे) उपसर्ग सहित (दिव:) दिव धातु के (कमणि) कर्म में (विभाषा) विकल्प से (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति होती है। पक्ष में द्वितीया विभक्ति होती है। __ उदा०-शतस्य प्रतिदीव्यति देवदत्तः । शत प्रतिदीव्यति देवदत्तः । देवदत्त जूवे में प्रति बार सौ रुपये जीतता है अथवा क्रय-विक्रय व्यवहार में प्रति बार सौ रुपये प्राप्त करता है। सहस्रस्य प्रतिदीव्यति यज्ञदत्तः । सहस्रं प्रतिदिव्यति यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त जूवे में प्रति बार हजार रुपये जीतता है अथवा क्रय-विक्रय व्यवहार में प्रतिवार सौ रुपये प्राप्त करता है। सिद्धि-शतस्य/शतं प्रतिदीव्यति देवदत्तः। यहां प्रति उपसर्गपूर्वक दिव धातु के कर्म 'शत' शब्द में षष्ठी विभक्ति है। पक्ष में कर्मणि द्वितीया' (२।३।२) से द्वितीया विभक्ति होती है। द्वितीया (१२) द्वितीया ब्राह्मणे।६०। प०वि०-द्वितीया ११ ब्राह्मणे ७।१।। अनु०-कर्मणि दिवस्तदर्थस्य इति चानुवर्तते । अन्वय:-ब्राह्मणे तदर्थस्य-व्यवहृपणोरर्थस्य दिव: कर्मणि द्वितीया । अर्थ:-ब्राह्मणविषयके प्रयोगे वर्तमानस्य तदर्थस्य द्यूतार्थस्य क्रयविक्रयव्यवहारार्थस्य च दिवो धातो: कर्मणि कारके द्वितीया विभक्तिर्भवति। अनुपसर्गस्य दिवो धातो: कर्मणि षष्ठ्यां प्राप्तायां वचनमिदमारभ्यते। उदा०-गामस्य तदह: सभायां दीव्येयुः । आर्यभाषा-अर्थ-(ब्राह्मणे) ब्राह्मण ग्रन्थ के प्रयोग में (तदर्थस्य) द्यूतक्रीडा और क्रय-विक्रय व्यवहार अर्थवाली (दिव:) दिव् धातु के (कर्माण) कर्म में (द्वितीया) द्वितीया विभक्ति होती है। उपसर्ग रहित दिव् धातु के कर्म में दिवस्तदर्थस्य' (२।३।५८) से षष्ठी विभक्ति प्राप्त थी, इससे द्वितीया विभक्ति का विधान किया गया है। उदा०-गामस्य तदह: सभायां दीव्येयुः । वे इसकी गौ को उस दिन सभा में खरीदें। सिद्धि-गामस्य तदह: सभायां दीव्येयुः। यहां दिव् धातु के कर्म गौ' में द्वितीया विभक्ति है। यह शतपथब्राह्मण का प्रयोग है। 'ब्राह्मणशब्द: शतपथस्याख्या इति न्यासकारः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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