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__ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-द्वितीया-ग्रामं गच्छति देवदत्तः । देवदत्त ग्राम को जाता है। नगरं व्रजति यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त नगर को जाता है। (२) चतुर्थी-ग्रामाय गच्छति देवदत्त: । अर्थ पूर्ववत् है। नगराय व्रजति यज्ञदत्तः । अर्थ पूर्ववत् है।
सिद्धि-गामं/ग्रामाय गच्छति देवदत्तः । यहां गत्यर्थक गम्' धातु के 'ग्राम' कर्म में द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति है।
(१) यहां गत्यर्थक धातु का ग्रहण इसलिये किया है कि यहां चतुर्थी विभक्ति ने हो-ओदनं पचति देवदत्तः।
(२) यहां चेष्टायाम्' का ग्रहण इसलिये किया है कि यहां चतुर्थी विभक्ति न हो-मनसा पाटलिपुत्रं गच्छति देवदत्तः ।
(३) यहां 'अनध्वनि' से अध्वा (मार्ग) कर्म का निषेध इसलिये किया है कि यहां चतुर्थी विभक्ति न हो-अध्वानम् (मार्गम्, पन्थानम्) गच्छति देवदत्तः ।
चतुर्थीविभक्तिप्रकरणम् चतुर्थी
(१) चतुर्थी सम्प्रदाने।१३। प०वि०-चतुर्थी ११ सम्प्रदाने ७।१। अनु०-'अनभिहिते' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अनभिहिते सम्प्रदाने चतुर्थी।
अर्थ:-अनभिहिते सम्प्रदाने कारके चतुर्थी विभक्तिर्भवति। अत्र तृतीयाविभक्तिमतिक्रम्य प्रसङ्गप्राप्ता चतुर्थी विभक्तिर्विधीयते।
उदा०-देवदत्त उपाध्यायाय गां ददाति । देवदत्ताय रोचते मोदकः । बालक: पुष्पेभ्य: स्पृहयति इत्यादिकम् ।
__ आर्यभाषा-अर्थ-(अनभिहिते) अकथित (सम्प्रदाने) सम्प्रदान कारक में (चतुर्थी) चतुर्थी विभक्ति होती है। यहां द्वितीया विभक्ति के पश्चात् तृतीया विभक्ति को छोड़कर प्रसङ्गवश चतुर्थी विभक्ति का विधान किया गया है।
उदा०-देवदत्त उपाध्यायाय गां ददाति । देवदत्त उपाध्याय जी के लिये गाय देता है। देवदत्ताय रोचते मोदकः । देवदत्त को लड्डू प्यारा लगता है। बालक: पुष्पेभ्य: स्पृहयति । बालक फूल को प्राप्त करना चाहता है।
सिद्धि-देवदत्त उपाध्यायाय गां ददाति । यहां कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम् (१।४।३२) से उपाध्याय' की सम्प्रदान संज्ञा है और उसमें प्रकृत सूत्र से चतुर्थी विभक्ति
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