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________________ द्वितीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ३६३ उदा०-(काल:) मासेनानुवाकोऽधीतः। संवत्सरेणानुवाकोऽधीत: । (अध्वा) क्रोशेनानुवाकोऽधीत: । योजनेनानुवाकोऽधीतः। आर्यभाषा-अर्थ-(अपवर्गे) फल प्राप्त होने पर क्रियासमाप्ति अर्थ में (कालाध्वनो:) कालवाची और अध्वा मार्गवाची शब्दों से (अत्यन्तसंयोगे) निरन्तरता होने पर (तृतीया) तृतीया विभक्ति होती है। उदा०-(१) (काल) मासेनानुवाकोऽधीत: । एक मास निरन्तर वेद का अनुवाक (अध्याय) पढ़ा और उसे ग्रहण भी कर लिया। संवत्सरेणानुवाकोऽधीत: । एक वर्ष निरन्तर वेद का अनुवाक पढ़ा और उसे ग्रहण भी कर लिया। (२) (अध्वा) क्रोशेनानुवाकोऽधीतः । एक कोस भर वेद का अनुवाक पढ़ा और उसे ग्रहण भी कर लिया। योजनेनानुवाकोऽधीत: । एक योजन भर वेद का अनुवाक पढ़ा और उसे ग्रहण भी कर लिया। सिद्धि-मासेनानुवाकोऽधीत:। यहां एक मास निरन्तर अनुवाक पढ़ने और उसे ग्रहण करने पर कालवाची 'मासेन' शब्द में तृतीया विभक्ति है। यदि केवल अत्यन्तसंयोग हो और अपवर्ग न हो वहां पूर्वसूत्र से द्वितीया विभक्ति ही होती है-मासमनुवाकोऽधीतः । ऐसे ही- संवत्सरेणानुवाकोऽधीत:' आदि। द्वितीयापवादः (सप्तमी पञ्चमी च) (६) सप्तमीपञ्चम्यौ कारकमध्ये ७। प०वि०-सप्तमी-पञ्चम्यौ १ ।२ कारक-मध्ये ७१ । स०-सप्तमी च पञ्चमी च ते-सप्तमीपञ्चम्यौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । कारकयोर्मध्य इति कारकमध्यः, तस्मिन्-कारकमध्ये (षष्ठीतत्पुरुषः)। अनु०-'कालाध्वनो:' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-कारकमध्ये कालाध्वनो: सप्तमीपञ्चम्यौ। अर्थ:-कारकयोर्मध्ये वर्तमानेभ्य: कालवाचिभ्योऽध्ववाचिभ्यश्च शब्देभ्य: सप्तमीपञ्चम्यौ विभक्ती भवति। उदा०-(१) काल:-अद्य भुक्त्वा देवदत्तो व्यहे, द्वयहाद् वा भोक्ता। (२) अध्वा-इंहस्थोऽयमिष्वास: क्रोशे क्रोशाद् वा लक्ष्यं विध्यति । आर्यभाषा-अर्थ-(कारकमध्ये) दो कारक शक्तियों के बीच में विद्यमान (कालाध्वनो:) कालवाची और अध्ववाची शब्दों से (सप्तमीपञ्चम्यौ) सप्तमी और पञ्चमी विभक्ति होती है। यह द्वितीया विभक्ति का अपवाद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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