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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०- (१) काल - (क्रिया) मास मधीते देवदत्तः । संवत्सर मधीते यज्ञदत्त: । (गुणः) मासं कल्याणी । संवत्सरं कल्याणी । (द्रव्यम्) मासं गुडधानाः। संवत्सरं गुडधानाः । (२) अध्वा - (क्रिया) क्रोशमधीते देवदत्तः । योजनमधीते यज्ञदत्तः । (गुणः) क्रोशं कुटिला नदी । योजनं कुटिला नदी । (द्रव्यम्) क्रोशं पर्वत: । योजनं पर्वतः । ३६२ आर्यभाषा- अर्थ - (कालाध्वनोः) कालवाची और अध्वा = मार्गवाची शब्दों से (द्वितीया ) द्वितीया विभक्ति होती है (अत्यन्तसंयोगे ) यदि वहां अत्यन्त संयोग हो । क्रिया, गुण और द्रव्य के साथ कालवाची और अध्ववाची शब्दों का सम्पूर्णता से सम्बन्ध होना अत्यन्त संयोग कहता है । उदा०- - (१) काल (क्रिया) - मासमधीते देवदत्तः । देवदत्त एक मास निरन्तर पढ़ता है। संवत्सरमधीते यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त एक वर्ष निरन्तर पढ़ता है । (गुण) मासं कल्याणी । एक मास कल्याणमय रहा । संवत्सरं कल्याणी । एक वर्ष कल्याणमय रहा। (द्रव्य) मासं गुडधाना:। एक मास गुडमिश्रित धाणी खाई । संवत्सरं गुडधाना: । एक वर्ष गुडमिश्रित धाणी खाई । (२) अध्वा (क्रिया) - क्रोशमधीते देवदत्तः । देवदत्त एक कोस तक पुस्तक पढ़ता है | योजनमधीते यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त एक योजन तक पुस्तक पढ़ता है। (गुण) क्रोशं कुटिला नदी । नदी एक कोस तक टेढ़ी है। योजनं कुटिला नदी । नदी एक योजन तक टेढ़ी है। (द्रव्य) क्रोशं पर्वत: । एक कोस तक पहाड़ है। योजनं पर्वत: । एक योजन तक पहाड़ है। सिद्धि-मासमधीते देवदत्तः । यह अध्ययन क्रिया के अत्यन्त संयोग में कालवाची 'मासम्' शब्द में द्वितीया विभक्ति है। ऐसे ही - संवत्सरमधीते यज्ञदत्त:' आदि । द्वितीयापवादः (तृतीया) - (५) अपवर्गे तृतीया | ६ | प०वि० - अपवर्गे ७ । १ तृतीया १ । १ । अनु०-कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे इत्यनुवर्तते। अन्वयः-अपवर्गे कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे तृतीया । अर्थ:-अपवर्गेऽर्थे कालवाचिभ्योऽध्ववाभ्यश्च शब्देभ्योऽत्यन्तसंयोगे सति तृतीया विभक्तिर्भवति । फलप्राप्तौ सत्यां क्रियापरिसमाप्तिरपवर्ग उच्यते 1 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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