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________________ ३८८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-कडारश्चासौ जैमिनिरिति कडारजैमिनि: । जैमिनिकडारो वा। कडार। गडुल । काण। खञ्ज । कुण्ठ। खञ्जर। खलति । गौर। वृद्ध । भिक्षुक । पिङ्गल । तनु। वटर। इति कडारादयः । आर्यभाषा-अर्थ-(कर्मधारये) कर्मधारय समास में (कडारा:) कडार आदि सुबन्तों का (वा) विकल्प से (पूर्वम्) पहले प्रयोग करना चाहिये। उदा०-कडारश्चासौ जैमिनिरिति कडारजैमिनिः। भूरे रंग का जैमिनि ऋषि। जैमिनिकडारः । अर्थ पूर्ववत् है। 'कडार: कपिल: पिङ्गपिशङ्गौ कद्रुपिङ्गलौ'इत्यमरः । सिद्धि-कडारजैमिनि: । कडार+सु+जैमिनि+सु । कडारजैमिनि+सु । कडारजैमिनिः । यहां कडार पद का पूर्व-प्रयोग किया गया है। जैमिनिकडारः । यहां विकल्प पक्ष में कडार शब्द का पश्चात्-प्रयोग किया गया है। कडार विशेषण पद है, उसका विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' (२।११५६) से कर्मधारय समास होने पर पूर्व-प्रयोग प्राप्त था, अत: यहां उसका विकल्प-विधान किया गया है। इति एकसंज्ञाधिकारः समाससंज्ञाधिकारश्च समाप्तः । इति पण्डितसुदर्शनदेवाचार्यविरचिते पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचने द्वितीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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