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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
शरीर का नीचे का भाग। (उत्तर) उत्तरं कायस्येति उत्तरकाय: । शरीर का ऊपर का
भाग।
सिद्धि- पूर्वकायः । पूर्व + सु + काय + ङस् । पूर्व+काय+सु । पूर्वकाय: । ऐसे ही- 'अपरकाय:' आदि ।
विशेष :- यहां पूर्व आदि शब्द अवयववाची हैं और काय-शरीर अवयववाची है, उन दोनों का समास किया गया है। दोनों का एक अधिकरण = द्रव्यवाच्य काय= शरीर है।
अर्ध शब्द:
(२) अर्धं नपुंसकम् ॥ २ ॥
प०वि०-अर्धम् १।१ नपुंसकम् १।१। अनु०-एकदेशिना, एकाधिकरणे इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-नपुंसकम् अर्धं सुब् एकदेशिना सुपा सह विभाषा समास एकाधिकरणे तत्पुरुषः ।
अर्थ :- नपुंसकलिङ्गे वर्तमानमवयववाचिना समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यते, एकाधिकरणे = एकद्रव्येऽभिधेये, तत्पुरुषश्च समासो भवति । षष्ठीतत्पुरुषापवादः ।
उदा० - अर्धम् - अर्धं पिप्पल्या इति अर्धपिप्पली । अर्धी कोशातक्या इति अर्धकाशातकी ।
आर्यभाषा - अर्थ - (नपुंसकम् ) नपुंसकलिङ्ग में विद्यमान अवयववाची (अर्धम्) अर्ध सुबन्त का ( एकदेशिना ) अवयववाची समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है (एकाधिकरणे) यदि एक अधिकरण- द्रव्य का कथन करना हो और उस समास की (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। यह षष्ठीतत्पुरुष समास का अपवाद है।
उदा० - अर्ध- अर्धं पिप्पल्या इति अर्धपिप्पली। छोटी पीपल का आधा भाग । अर्ध कोशातक्या इति अर्धकोशातकी । तोरी का आधा भाग ।
सिद्धि- अर्धपिप्पली । अर्ध+ सु + पिप्पली + ङस् । अर्धपिप्पली+सु । अर्धपिप्पली । यहां नपुंसक अर्ध शब्द का एकदेशवाची पिप्पली शब्द के साथ तत्पुरुष
समास है।
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