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________________ द्वितीयाध्यायस्य प्रथमः पादः ३४७ सिद्धि-गोवृन्दारकः । गो+सु+वृन्दारक+सु। गोवृन्दारक+सु। गोवृन्दारकः। ऐसे ही - अश्ववृन्दारकः' आदि । विशेष- गौ शब्द जब पुंलिङ्ग में प्रयुक्त होता है तब उसका अर्थ बैल और जब स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त होता है तब उसका अर्थ गाय होता है । अयं गौ: । यह बैल । इयं गौ: । यह गाय । कतरकतमौ - (१५) कतरकतमौ जातिपरिप्रश्ने । ६३ । प०वि०-कतर- कतमौ १ । २ जातिपरिप्रश्ने ७ । १ । 1 स०-कतरश्च कतमश्च तौ - कतरकतमौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । जाते: परिप्रश्न इति जातिपरिप्रश्नः तस्मिन् जातिपरिप्रश्ने ( षष्ठीतत्पुरुषः ) । अनु०-‘समानाधिकरणेन' इत्यनुवर्तते । अन्वयः-जातिपरिप्रश्ने कतरकतमौ सुपौ समानाधिकरणेन सुपा सह विभाषा समासः कर्मधारयतत्पुरुषः । , अर्थ:-जातिपरिप्रश्नेऽर्थे वर्तमानौ कतरकतमौ सुबन्तौ समानाधिकरणवाचिना समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्येते, समासश्च कर्मधारय तत्पुरुषो भवति । उदा०-(कतर:) कतरश्चासौ कठ इति कतरकठः । कतरश्चासौ कलाप इति कतरकलापः । ( कतमः ) कतमश्चासौ कठ इति कतमकठः । कतमश्चासौ कलाप इति कतमकलाप: । आर्यभाषा-अर्थ-(जातिपरिप्रश्ने) जाति के पूछने अर्थ में ( कतरकतमौ) कतर और कतम सुबन्त का (समानाधिकरणेन) समान अधिकरणवाची समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है और उसकी (तत्पुरुषः) कर्मधारयतत्पुरुष संज्ञा होती है। उदा०- -(कतर) कतरश्चासौ कठ इति कतरकठः । इन दोनों में कठ कौन-सा है । कतरश्चासौ कलाप इति कतरकलापः । इन दोनों में कलाप कौन-सा है । ( कतम) कतमश्चासौ कठ इति कतमकठः । इन सब में कठ कौन-सा है । कतमश्चासौ कलाप इति कतमकलाप: । इन सब में कलाप कौन-सा है. 7 सिद्धि-कतरकठः । कतर+सु+कठ+सु । कतरकठ + सु । कतरकठः । ऐसे ही 'कतमकठः' आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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