SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय-वक्तव्य पवित्र वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेदों के शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्यौतिष में छ: अंग है। इनमें व्याकरण-शास्त्र को वेद-शरीर का मुख माना गया है अर्थात् यह वेदों का एक मुख्य अंग है। महर्षि पतंजलि लिखते हैं- 'प्रधानं षट्ष्व ङ्गेषु व्याकरणं, प्रधाने च कृतो यत्न: फलवान् भवति' अर्थात् वेदों के छ: अंगों में व्याकरण-शास्त्र प्रधान है और प्रधान में किया हुआ यत्न सफल होता है। श्रीमद्दयानन्दार्ष विद्यापीठ गुरुकुल झज्जर (हरयाणा) के अधीन आज लगभग ३० गुरुकुल चल रहे हैं। जिनमें मुख्य रूप से पाणिनीय व्याकरण-शास्त्र का पठन-पाठन होता है। बहुत दिनों से इच्छा थी कि अपने गुरुकुलों में चल रहे व्याकरण-शास्त्र के पठन-पाठन की सुविधा के लिए पाणिनीय अष्टाध्यायी की संस्कृत तथा आर्यभाषा (हिन्दी) में एक उत्कृष्ट व्याख्या लिखकर प्रकाशित की जाये। हर्ष का विषय है कि अपने ही गुरुकुल के सुयोग्य स्नातक पं० सुदर्शनदेव आचार्य ने मेरी इच्छा के अनुरूप अष्टाध्यायी की संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में उत्तम व्याख्या लिखी है जिसे ब्रह्मर्षि स्वामी विरजानन्द आर्ष धर्मार्थ न्यास गुरुकुल झज्जर (हरयाणा) की ओर से प्रकाशित किया जा रहा है। यह 'पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्' नामक ग्रन्थ निम्नलिखित पांच भागों में प्रकाशित किया जायेगा१. प्रभम भाग (प्रथम-द्वितीय अध्याय)। २. द्वितीय भाग (तृतीय अध्याय)। ३. तृतीय भाग (चतुर्थ-पञ्चम अध्याय)। ४. चतुर्थ भाग (षष्ठ अध्याय)। ५. पञ्चम भाग (सप्तम-अष्टम अध्याय)। श्रावणी उपाकर्म (२०५४ वि०) के शुभ अवसर पर 'पाणिनीय-अष्टाध्यायीप्रवचनम्' का प्रथम भाग पाठकवृन्द की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। शेष चार भाग भी शीघ्र प्रकाशित किये जायेंगे। सम्पूर्ण अष्टाध्यायी भाष्य (पांचों भागों) का मूल्य ५०० रुपये है। प्रथम भाग लेकर सम्पूर्ण भाष्य के ग्राहक बननेवाले पाठकों को पांचों भाग ४०० रुपये में दिये जायेंगे। २०-७-१९९७ गुरुपूर्णिमा -ओमानन्द सरस्वती आचार्य गुरुकुल झज्जर (हरयाणा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy