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________________ ३१४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स्वयं शब्द: (२) स्वयं क्तेन।२५। प०वि०-स्वयम् अव्ययपदम्, क्तेन ३।१। अन्वय:-स्वयं सुप् क्तेन सुपा सह विभाषा समासस्तत्पुरुषः । अर्थ:-स्वयमित्यव्ययं सुबन्तं क्तप्रत्ययान्तेन समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यते, तत्पुरुषश्च समासो भवति। उदा०-स्वयम्-स्वयंधौतौ पादौ । स्वयंविलीनमाज्यम्। 'स्वयम्' इत्यव्ययम् ‘आत्मना' इत्यस्यार्थे वर्तते, तस्य द्वितीयया सह सम्बन्धो नोपपद्यतेऽतोऽत्र 'द्वितीया' इति नानुवर्तते। आर्यभाषा-अर्थ-(स्वयम्) स्वयम् इस अव्यय सुबन्त का (क्तेन) क्त-प्रत्ययान्त समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। उदा०-स्वयम् । स्वयं धौतौ पादौ । स्वयंधौतौ पादौ । खुद धोये हुये पांव । स्वयं विलीनमाज्यम् । स्वयंविलीनमाज्यम् । खुद पिंघला हुआ घी।। 'स्वयम्' यह अव्यय 'अपने-आप' अर्थ में है, इसका द्वितीया के साथ सम्बन्ध नहीं बनता है, अत: यहां द्वितीया' पद की अनुवृत्ति नहीं है। जहां समास होता है वहां दोनों पद एक हो जाते हैं और उनका एक ही स्वर होता है और जहां समास नहीं होता है वहां स्वयं और धौत पद पृथक्-पृथक् रहते हैं तथा उनका प्राप्त स्वर भी पृथक्-पृथक् रहते हैं तथा उनका प्राप्त स्वर भी पृथक्-पृथक् ही होता है। सिद्धि-स्वयम्+सु+धौत+सु। स्वयंधौत+सु। स्वयंधौत+अम्। स्वयंधौतम् । ऐसे ही-स्वयंविलीनम्। खट्वाशब्दाः (३) खट्वा क्षेपे।२६। प०वि०-खट्वा ११ क्षेपे ७।१।। अनु०-द्वितीया, क्तेन इति चानुवर्तते । अन्वय:-खट्वा द्वितीया सुप् क्तेन सुपा सह नित्यं समास: क्षेपे तत्पुरुषः। अर्थ:-खट्वा इति द्वितीयान्तं सुबन्तं क्त-प्रत्ययान्तेन समर्थेन सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते, क्षेपे गम्यमाने, तत्पुरुषश्च समासो भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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