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________________ द्वितीयाध्यायस्य प्रथमः पादः ३१५ उदा०-खट्वारूढो जाल्मः । खट्वाप्लुतो जाल्म:। खट्वारोहणं विमार्गप्रस्थानस्योपलक्षणम्। सर्व एवाविनीत: खट्वारूढ इत्युच्यते। विभाषाऽधिकारेऽयं नित्यसमास एव । यतो हि विग्रहवाक्येन क्षेपो न गम्यते। क्षेप: निन्दा। __ आर्यभाषा-अर्थ-(द्वितीया, खट्वा) द्वितीयान्त खट्वा सुबन्त का (क्तेन) क्त-प्रत्ययान्त समर्थ सुबन्त के साथ नित्य समास होता है (क्षेपे) निन्दा विषय में और उस समास की (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। उदा०-खट्वारूढो जाल्म: । खट्वाप्लुतो जाल्मः । खाट पर आरोहण किया हुआ दुष्ट । जो ब्रह्मचर्य आश्रम को पूरा न करके पहले ही गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर जाता है, वह निन्दनीय है, अत: उसे खट्वारूढ' कहते हैं। सिद्धि-खट्वारूढः । खट्वा+अम्+आरूढ+सु । खट्वारूढ+सु। खट्वारूढः । पूर्ववत् । ऐसे ही-खट्वाप्लुत:। विशेष-यह विभाषा के अधिकार में भी नित्य समास है क्योंकि विग्रह-वाक्य से क्षेप (निन्दा) की प्रतीति नहीं होती है। सामिशब्दः (४) सामि।२७। प०वि०-सामि अव्ययपदम् । अनु०:-'द्वितीया' इति नानुवर्ततेऽव्ययेन सामिशब्देन सह सम्बन्धाभावात्। ‘क्तेन' इत्यनुवर्तते । सामिशब्दोऽर्धवाची।। अन्वय:-सामि सुप् क्तेन सुपा सह विभाषा समासस्तत्पुरुषः । अर्थ:-'सामि' इत्यत्ययं क्त-प्रत्ययान्तेन समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यते, तत्पुरुषश्च समासो भवति। उदा०-सामि भुक्तमिति सामिभुक्तम् । सामि पीतमिति सामिपीतम्। सामि कृतमिति सामिकृतम् । यत्र समासस्तत्रैकपद्यमेकस्वर्यं च भवति । आर्यभाषा-अर्थ- (सामि) अर्धवाची अव्यय सामि सुबन्त का (क्तेन) क्त-प्रत्ययान्त समर्थ सुबन्त के साथ विकल्प से समास होता है और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। उदा०-सामि भुक्तमिति सामिभुक्तम् । आधा खाया। सामि पीतमिति सामिपीतम् । आधा पीया। सामि कृतमिति सामिकृतम् । आधा किया। जहां समास है वहां एक पद और एक स्वर होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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