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द्वितीयाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(अनु:) वनस्य अनु इति अनुवनम्। अनुवनमशनिर्गतः । वनस्यानु अशनिर्गत:।
आर्यभाषा-अर्थ-(अनुः) अनु सुन्बन्त (यत्समया) जिसकी समीपता बतलाता है उस (लक्षणेन) चिह्नभूत (सुपा) समर्थ सुबन्त के (सह) साथ उसका (समास:) समास होता है और उसकी (अव्ययीभाव:) अव्ययीभाव संज्ञा होती है।
उदा०-(अनु) वनस्य अनु इति अनुवनम् । अनुवनमशनिर्गत: । विद्युत् वन के समीप चली गई। यहां अव्ययीभाव समास होगया। वनस्यानु अशनिर्गत: । अर्थ पूर्ववत् है। यहां अव्ययीभाव समास नहीं हुआ। अनुः
(१२) यस्य चायामः।१६। प०वि०-यस्य ६।१ च अव्ययपदम् आयाम: १।१। अनु०-'अनु:, लक्षणेन, सुप्, सुपा सह, अव्ययीभावः' इत्यनुवर्तते ।
अन्वय:-अनु: सुप् यस्य चायामस्तेन लक्षणेन सुपा सह विभाषा समासोऽव्ययीभावः।
अर्थ:-अनु: सुबन्तश्च यस्यायामवाची च तेन लक्षणभूतेन समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यते, अव्ययीभावश्च समासो भवति । आयाम: विस्तारः।
__उदा०-(अनु:) गङ्गाया अनु इति अनुगङ्गम् । अनुगङ्गं वाराणसी। गङ्गाया अनु वाराणसी। यमुनाया अनु इति अनुयमुनम्। अनुयमुनं मथुरा। यमुनाया अनु मथुरा।
__ आर्यभाषा-अर्थ-(अनुः) अनु सुबन्त, (च) और (यस्य) जिसके (आयाम:) विस्तार का वाचक है उस (लक्षणेन) चिह्नभूत (सुपा) समर्थ सुबन्त के साथ उसका (समास:) समास होता है और उसकी (अव्ययीभाव:) अव्ययीभाव संज्ञा होती है।
उदा०-(अनु) गङ्गाया अनु इति अनुगङ्गम् । अनुगङ्गं वाराणसी। बनारस नगरी गङ्गा के तट पर फैली हुई है। यहां अव्ययीभाव समास होगया। गङ्गाया अनु वाराणसी। अर्थ पूर्ववत् है। यहां अव्ययीभाव समास नहीं हुआ। यमुनाया अनु इति अनुयमुनम् । अनुयमुनं मथुरा। मथुरा नगरी यमुना के तट पर फैली हुई है। यहां अव्ययीभाव समास होगया। यमुनाया अनु मथुरा। अर्थ पूर्ववत् है। यहां अव्ययीभाव समास नहीं हुआ।
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