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________________ २६६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् श्रितातीतगतात्यस्तप्राप्तापन्नैः' (२।१।२४) अर्थात् द्वितीयान्त सुबन्त का श्रित आदि सुबन्तों के साथ समास होता है। कष्टं श्रित इति कष्टश्रितः । कष्ट को प्राप्त हुआ। यहां कष्टम् सुबन्त का 'श्रित:' सुबन्त के साथ समास होगया। अव्ययीभावप्रकरणम् अधिकार: (१) अव्ययीभावः ।५। प०वि०-अव्ययीभाव: ११ । अर्थ:-इत ऊर्ध्वम् अव्ययीभावसंज्ञा भवतीत्यधिकारोऽयम् । उदा०-वक्ष्यति-'यथाऽसादृश्ये' इति। यथावृद्धं ब्राह्मणानाऽऽमन्त्रयस्व। आर्यभाषा-अर्थ-(अव्ययीभाव:) इससे आगे अव्ययीभाव संज्ञा का अधिकार है। आगे कहा जायेगा यथाऽसादृश्ये (२।१।७) अर्थात् असादृश्य अर्ध में जो यथा' शब्द है उसका जो सुबन्त के साथ समास होता है, उसकी अव्ययीभाव संज्ञा होती है। 'यथावद्धं ब्राह्मणानामन्त्रयस्व' जो-जो वृद्ध ब्राह्मण हैं, उन्हें भोजन के लिये आमन्त्रित करो। यथावृद्धम्' यहां अव्ययीभाव समास है। अव्ययम्(२) अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यृद्ध्यर्थाभावात्ययासम्प्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चाद्यथाऽऽनुपूर्व्ययौगपद्य__सादृश्यसम्पत्तिसाकल्यान्तवचनेषु ।६। प०वि०-अव्ययम् १।१ विभक्ति-समीप-समृद्धि-व्यृद्धि-अर्थाभावअत्यय-असम्प्रति-शब्दप्रादुर्भाव-पश्चात्-यथा-आनुपूर्व्य-योगपद्य-सादृश्यसम्पत्ति-साकल्य-अन्तवचनेषु ७।३। स०-विभक्तिश्च समीपं च समृद्धिश्च व्यृद्धिश्च अर्थाभावश्च अत्ययश्च असम्प्रतिश्च शब्दप्रादुर्भावश्च पश्चाच्च यथा च आनुपूर्णं च यौगपद्यं च सादृश्यं च सम्पत्तिश्च साकल्यं च अन्तश्च ते-विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यृद्ध्यर्थाभावत्ययासम्प्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चाद्यथाऽऽनुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसकल्यान्ता:, विभक्ति०साकल्यान्ता वचनानि येषां ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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