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________________ अधिकार: द्वितीयाध्यायस्य प्रथमः पादः समाससंज्ञाधिकारः (१) प्राक् कडारात् समासः । ३ । प०वि० - प्राक् अव्ययपदम्, कडारात् ५ । १ समासः १ । १ । अन्वयः-कडारात् प्राक् समासः । अर्थ:- कडारशब्दात् प्राक् समाससंज्ञा भवतीत्यधिकारोऽयम् । उदा०-वक्ष्यति-‘यथाऽसादृश्ये' ( २ ।१ । ७ ) इति यथावृद्धं ब्राह्मणानाऽऽमन्त्रयस्व । आर्यभाषा - अर्थ - (कडारात्) 'कडार' शब्द से (प्राक् ) पहले-पहले (समासः ) समास संज्ञा होती है, यह अधिकार सूत्र है । 'कडारा: कर्मधारये' (२/२/३८) यहां जो 'कडार' शब्द का उच्चारण किया गया है, इससे पहले-पहले 'समास' का अधिकार समझना चाहिये। जैसे कि आगे कहा जायेगा कि 'यथाऽसादृश्ये (२1१1७) असादृश्य अर्थ में 'यथा' शब्द का सुबन्त के साथ समास होता है। यथावृद्धं ब्राह्मणानाऽऽमन्त्रयस्व' जो-जो वृद्ध ब्राह्मण हैं उन्हें भोजन के लिये आमन्त्रित करो । 'यथावृद्धम्' यहां पूर्वोक्त सूत्र (२1१1७ ) से अव्ययीभाव समास है । अधिकार: सह सुपा । ४ । प०वि०-सह अव्ययपदम्, सुपा ३ । १ । अनु०-द्वितीयसूत्रात् ‘सुप्' इति पदमनुवर्तते । २६५ अन्वयः -सुप् सुपा सह समासः । अर्थ:-सुबन्तं सुबन्तेन सह समस्यते, इत्यधिकारोऽयम् । उदा०-वक्ष्यति-‘द्वितीया श्रितातीतगतात्यस्तप्राप्तापन्नैः' (२।१।२४) इति । द्वितीयान्तं सुबन्तं श्रितादिभिः सुबन्तैः सह समस्यते । कष्टं श्रित इति कष्टश्रितः, इत्यादि । Jain Education International आर्यभाषा - अर्थ - (सुप्) सुबन्त पद का (सुपा) सुबन्त पद के (सह) साथ (समासः ) समास होता है, यह अधिकार सूत्र है। जैसे कि आगे कहा जायेगा कि 'द्वितीया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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