________________
૨૬૨
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-विराम: वर्णानामुच्चारणाभावोऽवसान-संज्ञको भवति । उदा०-दधि । मधुं। वृक्ष: । प्लक्ष: ।
आर्यभाषा-अर्थ- (विराम:) वर्गों के उच्चारण के भाव की (अवसानम्) अवसान संज्ञा होती है।
उदा०-दधि । मधु। वृक्ष: । प्लक्षः ।
सिद्धि-(१) दधि । यहां आगे वर्गों के उच्चारणाभाव में अवसान संज्ञा होने से 'अणोऽप्रगृह्यस्यानुनासिकः' (८।४।५७) से अवसान में विद्यमान दधि' शब्द में अनुनासिक गुण का आधान हो जाता है। इसी प्रकार-मधु।
(२) वृक्ष: । वृक्ष+सु। वृक्ष+स् । वृक्ष+रु । वृक्ष+र। वृक्ष+: । वृक्षः। यहां आगे वर्णों के उच्चारणाभाव में अवसान संज्ञा होने से खरवासनायोर्विसर्जनीय:' (८।३।१५) से 'ह' के रेफ को :: विसर्जनीय' आदेश हो जाता है। इसी प्रकार-प्लक्षः।
इति पण्डितसुदर्शनदेवाचार्यविरचिते पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचने प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः। समाप्तश्चायं प्रथमोऽध्यायः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org