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भूमिका अध्यापन-कार्य से निश्चिन्त होगए। अब पं० विश्वप्रिय शास्त्री ब्रह्मचारियों को वर्णोच्चारण शिक्षा, अष्टाध्यायी महाभाष्य आदि पाणिनीय व्याकरण शास्त्र पढ़ाने लगे।
आप ब्रह्मचर्य-काल में गुरुकुल में ही रहते थे। गृहस्थ-आश्रम में प्रवेश के पश्चात् झज्जर नगर में रहने लगे। प्रतिदिन झज्जर से आते और सायंकाल पढ़ाकर चले जाते थे। उन दिनों पठन-पाठन कार्य में कोई अवकाश नहीं होता था। 'स्वाध्याये नास्त्यनध्यायः' के आदेश का दृढ़तापूर्वक पालन किया जाता था। अत: आप गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी । अध्यापन-यज्ञ में कोई अनध्याय (छुट्टी) नहीं रखते थे। यह एक गृहस्थ के लिए परम तप है।
आपने १९४५ ई० से १९५५ ई० दश वर्ष तक एक आदर्श उपाचार्य के रूप में शिक्षा-सत्र का संचालन किया। आपके चरणों में बैठकर जिन छात्रों ने पाणिनीय व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया उनके कुछ नाम निम्नलिखित हैं१. पं० यज्ञदेव शास्त्री लूलोढ, रेवाड़ी (हरयाणा)। २. पं० वेदव्रत शास्त्री अजीतपुरा, त० चिड़ावा, जिला झुझुनूं (राज.)। ३. पं० सुदर्शनदेव आचार्य बालन्द, रोहतक (हरयाणा)। ४. पं० सत्यव्रत आचार्य सुलतान बाजार, हैदराबाद (आन्ध्रप्रदेश)।
__पं० सत्यवीर शास्त्री डालावास, भिवानी (हरयाणा)। ६. पं० महावीर मीमांसक छतेरा माजरा, सोनीपत (हरयाणा)। ७. पं० राजवीर शास्त्री फजलगढ़, मेरठ (उत्तरप्रदेश)। ८. पं० मनुदेव शास्त्री डालावास, भिवानी (हरयाणा)। ९. डॉ० सोमवीर चमराड़ा, करनाल (हरयाणा)। १०. पं० यशपाल आचार्य सतनालीकाबास, महेन्द्रगढ़ (हरयाणा)। ११. श्री मनुदेव योगी (स्वामी सत्यपति) फरमाणा रोहतक (हरयाणा)। १२. पं० धर्मपाल शास्त्री, बोरी, उस्मानाबाद (महाराष्ट्र)। १३. पं० धर्मव्रत शास्त्री चुड़ेला, झुंझनूं (राजस्थान)। १४. पं० वेदपाल शास्त्री झोझूकलां (भिवानी) हरयाणा। __आपकी अध्यापन-कार्य के अतिरिक्त लेखन-कार्य में विशेष रुचि थी। आपके वैदिक-सिद्धान्त तथा सामयिक समस्याओं के समाधान में आर्यजगत् तथा दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित होते रहते थे। आचार्य हरिदेव गुरुकुल गोतमनगर दिल्ली ने 'तम्बाकू का नशा' नामक आपकी एक रचना प्रकाशित कराई है। आपके महत्त्वपूर्ण लेख निम्नलिखित हैं१. पंजाब का हिन्दी आन्दोलन । २. महर्षि दयानन्द और स्वराज्य ।
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