SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० गतीनां प्राक् प्रयोगः पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२१) ते प्राग् धातोः । ८० । प०वि०-ते १।३ प्राक् १।१ धतििोः ५ ११ । अन्वयः-ते गति-उपसर्गनिपाताः धातोः प्राक् 1 अर्थ:-ते गतिसंज्ञका उपसर्गसंज्ञकाश्च निपाता धातोः प्राक् प्रयोक्तव्याः । उदा०-प्रणयति । परिणयति । प्रणायकः । परिणायकः, इत्यादि । आर्यभाषा - अर्थ - (त) उन गति संज्ञावाले और उपसर्ग संज्ञावाले निपातों का (धातो: ) धातु से (प्राक् ) पहले प्रयोग करना चाहिये । उदा० - प्रणयति । परिणयति । प्रणायकः । परिणायकः । इत्यादि उदाहरणों में प्र आदि उपसर्ग तथा गतिसंज्ञक शब्दों का धातु से पहले प्रयोग किया गया है। अर्थ पूर्ववत् है । गतीनां परप्रयोगः (२२) छन्दसि परेऽपि । ८१ । प०वि०-छन्दसि ७ ।१ परे १ । ३ अपि अव्ययपदम् । अनु० - 'ते, धातो:' इत्यनुवर्तते । अन्वयः - ते गति-उपसर्गा निपाताश्छन्दसि परेऽपि । अर्थ:- ते गतिसंज्ञका उपसर्गसंज्ञकाश्च निपाताश्छन्दसि = वैदिकभाषायां धातोः परेऽपि प्रागपि च प्रयोक्तव्याः । उदा०-याति नि हस्तिना । नियाति हस्तिना । हन्ति नि मुष्टिना । निहन्ति मुष्टिना । एषां गतिसंज्ञकानां शब्दानां परेषां प्रयुज्यमानानां न गतिसंज्ञकार्यं किञ्चिदस्ति । केवलं परप्रयोगेऽपि क्रियायोग एषामस्तीति विज्ञाप्यते । आर्यभाषा - अर्थ - (ते) उन गति संज्ञावाले तथा उपसर्ग संज्ञावाले निपातों का (छन्दसि ) वैदिक भाषा में (धातोः) धातु से (परेऽपि ) पर भी और पूर्व भी प्रयोग होता है। उदा० - याति नि हस्तिना । नियाति हस्तिना । वह हाथी से नित्य जाता है । हन्ति नि मुष्टिना । निहन्ति मुष्टिना । वह मुक्के से नित्य मारता है। विशेष- इन गति संज्ञावाले और उपसर्ग संज्ञावाले निपातों का धातु से परे प्रयोग होने पर कोई गति संज्ञा सम्बन्धी कार्य नहीं होता है। परप्रयोग होने पर भी इनका केवल क्रिया के साथ योग होता है, यह बतलाया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy