SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः अर्थ:-बन्धनेऽर्थे प्राध्वं निपात: कृञ्योगे नित्यं गतिसंज्ञको भवति । उदा०-प्राध्वंकृत्य। आर्यभाषा-अर्थ- (बन्धने) बन्धन अर्थ में (प्राध्वम्) प्राध्वम् निपात की (कृषि) कृञ् धातु के योग में (नित्यम्) सदा (गति:) गति संज्ञा होती है। उदा०-प्राध्वंकृत्य । बन्धन से अनुकूल बनाकर। 'बन्धने' का कथन इसलिये किया है कि यहां गति संज्ञा न हो-प्राध्वं कृत्वा शकटं गत: । गाड़ी को मार्ग अभिमुख करके चला गया। विशेष-'प्राध्वम्' शब्द मकारान्त निपात है। यह अनुकूलता अर्थ में प्रयुक्त होता है। जीविका-उपनिषदौ (२०) जीविकोपनिषदावौपम्ये।७६ । प०वि०-जीविका-उपनिषदौ १।२ औपम्ये ७।१ । स०-जीविका च उपनिषत् च तौ-जीविकोपनिषदौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। उपमाया भाव औपम्यम्, तस्मिन् औपम्ये (तद्धितवृत्ति:)। अनु०-'नित्यं कृत्रि गति:' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-औपम्ये जीविकोपनिषदौ निपातौ कृत्रि नित्यं गतिः । अर्थ:-औपम्ये=उपमा-विषये जीविका-उपनिषदौ निपातौ कृञ्योगे नित्यं गतिसंज्ञकौ भवत:। उदा०-(जीविका) जीविकाकृत्य । (उपनिषत्) उपनिषत्कृत्य। आर्यभाषा-अर्थ- (औपम्ये) उपमा विषय में (जीविका-उपनिषदौ) जीविका और उपनिषद् निपातों की (कृजि) कृञ् धातु के योग में (नित्यम्) सदा (गति:) गति संज्ञा होती है। उदा०-(जीविका) जीविकाकृत्य । जीविकासी बनाकर। (उपनिषद्) उपनिषत्कृत्य । रहस्य-सा बनाकर। 'औपम्ये' का कथन इसलिये किया गया है कि यहां गति संज्ञा न हो-जीविकां कृत्वा गतः । जीविका बनाकर चला गया। उपनिषत् कृत्वा गतः। रहस्य बनाकर चला गया। " पतः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy