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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अलम्
(५) भूषणेऽलम्।६४। प०वि०-भूषणे ७१ अलम् १।१। अनु०-'क्रियायोगे गति:' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-भूषणेऽलम् निपात: क्रियायोगे गतिः । अर्थ:-भूषणेऽर्थेऽलं निपात: क्रियायोगे मतिसंज्ञको भवति। उदा०-अलंकृत्य । अलंकृतम् । यद् अलंकरोति ।
आर्यभाषा-अर्थ-(भूषणे) भूषित करने अर्थ में (अलम्) 'अलम्' निपात की (क्रियायोगे) क्रिया के योग में (गति:) गति संज्ञा होती है।
उदा०-अलंकृत्य। भूषित करके । अलंकृतम् । भूषित किया। यद् अलंकरोति। कि वह भूषित करता है।
विशेष- 'अलम्' शब्द के निषेध, सामर्थ्य, पर्याप्त और भूषण ये चार अर्थ हैं। केवल भूषण अर्थ में ही 'अलम्' शब्द की गति संज्ञा होती है, अन्यत्र नहीं। जैसे-अलं भुक्त्वा ओदनं गतः । पर्याप्त भात खाकर गया। अन्तः
(६) अन्तरपरिग्रहे।६५। प०वि०-अन्त: ११ अपरिग्रहे ७।१। स०-न परिग्रह इति अपरिग्रहः, तस्मिन्-अपरिग्रहे (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-‘क्रियायोगे गति:' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अपरिग्रहेऽन्तर् निपात: क्रियायोगे गतिः । अर्थ:-अपरिग्रहेऽर्थेऽन्तर् निपात: क्रियायोगे गतिसंज्ञको भवति । उदा०-अन्तर्हत्य । अन्तर्हतम् । यदन्तर्हन्ति ।
आर्यभाषा-अर्थ-(अपरिग्रहे) स्वीकार करने अर्थ को छोड़कर (अन्तः) अन्तर्' निपात की (क्रियायोगे) क्रिया के योग में (गति:) गति संज्ञा होती है।
उदा०-अन्तर्हत्य । मध्य में मारकर । अन्तर्हतम् । मध्य में मारा। यद् अन्तर्हन्ति । कि वह मध्य में मारता है।
'अपरिग्रहे' का कथन इसलिये किया गया है कि यहां गति संज्ञा न हो-'अन्तर्हत्वा मूषिकां म्येनो गतः। बाज चूहिया को पकड़कर उड़ गया।
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