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________________ प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः २५६ अर्थः-अनितिपरम् अनुकरणवाचकं शब्दरूपं क्रियायोगे गतिसंज्ञकं भवति । उदा० - खाटकृत्य । खाटकृतम् । यत् खाट्करोति । आर्यभाषा-अर्थ-(अनितिपरम् ) जिससे इति शब्द परे नहीं है (अनुकरणम् ) उस अनुकरणवाची निपात की (गतिः) गति संज्ञा होती है। उदा०-खाट्कृत्य। खाट् आत्मक अनुकरण करके । खाट्कृतम् । खाट् आत्मक अनुकरण किया। यद् खाट्करोति । कि वह खाट् आत्मक अनुकरण करता है। पहले किसी ने 'खाट्' ऐसा कहा था। दूसरे ने उसका अनुकरण करके 'खाट्' ऐसा कहा। उस अनुकरणवाची शब्द की इस सूत्र से गति संज्ञा की गई है। गति संज्ञा के सब कार्य पूर्ववत् हैं। 'अनितिपरम्' का कथन इसलिये किया है कि यहां गति संज्ञा ने हो- खाडिति कृत्वा निरष्ठीवत् । उसने खाट् ऐसा शब्द करके थूक दिया । सत्-असत् (४) आदरानादरयोः सदसती । ६३ । प०वि०-आदर-अनादरयोः ७ । २ सत् - असती १ । २ । स०-आदरश्च अनादरश्च तौ - आदरानादरौ, तयो:-आदरानादरयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । सत् च असत् च ते सदसती ( इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु० - 'क्रियायोगे गतिः' इत्यनुवर्तते । अन्वयः - आदरानादरयोः सदसती निपातौ क्रियायोगे गतिः । अर्थ :- आदरेऽनादरे चार्थे यथासंख्यं सत् असत् निपाती क्रियायोगे, गतिसंज्ञकौ भवतः । उदा०- ( सत्) सत्कृत्य । सत्कृतम् । यत् सत्करोति । (असत्) असत्कृत्य। असत्कृतम् । यद् असत् करोति । आर्यभाषा-अर्थ- (आदरानादरयोः) आदर और अनादर अर्थ में (सदसती ) सत् और असत् निपात की (क्रियायोगे) क्रिया के योग में (गतिः) गति संज्ञा होती है । उदा०- (सत्) सत्कृत्य । आदर करके । सत्कृतम् । आदर किया । यत् सत्करोति । कि वह आदर करता है। (असत्) असत्कृत्य । अनादर करके । यद् असत्करोति । कि वह अनादर करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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