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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
के प्रयोग में 'ग्राम:' आधार है, अतः उस कारक की कर्म संज्ञा होती है। इसलिये उसमें
'कर्मणि द्वितीया' (२/३/२) से द्वितीया विभक्ति हो जाती है।
विशेष- यहां 'आधारोऽधिकरणम् (१।४।४५ ) से अधिकरण संज्ञा प्राप्त थी । इस सूत्र से कर्म संज्ञा का विधान किया गया है।
कर्मसंज्ञा
(४) उपान्वध्याङ्वसः । ४८ । प०वि० उप- अनु अधि - आङ्-वसः ६ । १ ।
स०-उपश्च अनुश्च अधिश्च आङ् च ते-उपान्वध्याङः, तेभ्यः-उपान्वध्याङ्भ्यः । उपान्वध्याङ्भ्यो वस् इति उपान्वध्याङ्ग्वस् । तस्य उपान्वध्याङ्ग्वस : ( इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितपञ्चमीतत्पुरुषः) ।
अनु०-‘आधार:, कर्म' इत्यनुवर्तते ।
अन्वयः-उपान्वध्याङ्ग्वस आधारः कारकं कर्म ।
अर्थः-उप-अनु-- अधि-आङ्भ्यः परस्य वस्- धातोः प्रयोगे य आधारः, तत् कारकं कर्मसंज्ञकं भवति ।
उदा०-(उपवसः) ग्राममुपवसति सेना । ( अनुवसः ) ग्राममनुवसति सेना। (अधिवसः) ग्राममधिवसति सेना । ( आवस: ) ग्राममावसति सेना । पूर्वेणाधिकरणसंज्ञायां प्राप्तायां कर्मसंज्ञा विधीयते ।
आर्यभाषा - अर्थ - ( उपान्वध्याङ्ग्वसः) उप, अनु, अधि और आङ् उपसर्ग से परे वस् धातु के प्रयोग में (आधार:) जो आधार है, (कारकम् ) उस कारक की (कर्म) कर्म संज्ञा होती है।
उदा०-(उपवस्) ग्राममुपवसति सेना। सेना ग्राम के पास में रहती है। (अनुवस् ) ग्राममनुवसति सेना । सेना ग्राम के पिछले भाग में रहती है। (अधिवस् ) ग्राममधिवसति सेना | सेना ग्राम के ऊपरले भाग पर रहती है । (आवस् ) ग्राममावसति सेना । सेना ग्राम से इधर रहती है।
सिद्धि - (१) ग्राममुपवसति सेना। यहां उप उपसर्ग से परे 'वस्' धातु के प्रयोग में 'ग्राम:' आधार है। अतः उस कारक की कर्म संज्ञा होती है। इसलिये उसमें 'कर्मणि द्वितीया' (२ 1३1२) से द्वितीया विभक्ति हो जाती है। इसी प्रकार - ग्राममनुवसति सेना । ग्राममधिवसति सेना | ग्राममावसति सेना ।
विशेष- यहां 'आधारोऽधिकरणम्' ( १/४/४५ ) से अधिकरण संज्ञा प्राप्त थी । इस सूत्र से कर्म संज्ञा का विधान किया गया है।
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