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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्ष गुरुकुल की स्थापना
आपने श्रावण शुक्ला पूर्णिमा १९९१ वि० (दि० ८ अगस्त १९३४ ई०) को पंचकुइया रोड़ नई दिल्ली के एक क्वाटर में गुरुवर शुद्धबोध तीर्थ की स्मृति में श्रीमद् दयानन्द वेद विद्यालय नामक आर्ष गुरुकुल की स्थापना की। इस गुरुकुल की स्थापना के समय आपके पास केवल दो छात्र तथा सवा छ: आने (वर्तमान ३८ न० पै०) कोष में थे। तत्पश्चात् दिल्ली यमुना-तट पर पर्णकुटीर बनाकर आर्षपाठविधि से अष्टाध्यायी, महाभाष्य आदि ग्रन्थों का पठन-पाठन रूप सारस्वत यज्ञ चलता रहा। सन् १९४० में युसुफ सराय के निकट ४-५ बीधा भूमि गुरुकुल को दान में मिल गई। अत: गुरुकुल यमुना-तट से स्थायी रूप में यहीं आगया। आपने अपने यौवन-काल के २०-२५ वर्ष इस गुरुकुल की सेवा में होम दिये। इस गुरुकुल की यश-सुरभि सब दिशाओं में फैल गई। आजकल आपके ही पौत्र-शिष्य ब्र० हरिदेव इस गुरुकुल का संचालन कर रहे हैं। आज यह गुरुकुल अष्टाध्यायी और महाभाष्य आदि की शिक्षा का प्रमुख केन्द्र है। इसके अतिरिक्त आपने गुरुकुल बुकलाना (मेरठ) तथा खेड़ा-खुर्द (दिल्ली) में गुरुकुलों की स्थापना की। आज गुरुकुल खेड़ा खुर्द भी आर्ष शिक्षा पद्धति का उत्तम शिक्षण-संस्थान है। अष्टाध्यायी, महाभाष्य आदि आर्षग्रन्थों के सुव्यवस्थित पठन-पाठन के लिए सर्वप्रथम आर्ष गुरुकुल का पुण्य श्रेय आपको ही जाता है। साहित्य रचना
आपने अपने गुरुकुलों में प्रचलित आर्षपाठविधि की दृष्टि से संस्कृत-प्रदीपिका (१-२ भाग), पाणिनीय वर्णोच्चारण शिक्षा, अष्टाध्यायी-शब्दानुशासनम्, संस्कृत-व्याकरण प्रकाश, संस्कृत-पथ, गद्यमयं महाभारतम्, सरलं संस्कृतम् आदि अनेक ग्रन्थ लिखकर प्रकाशित कराये। आपकी विशिष्ट रचना 'सिद्धान्त कौमुदी की अन्त्येष्टि' ने तो पौराणिक वैयाकरण जगत् में खलबली मचा दी। आपके 'दयानन्द सन्देश' नामक मासिक पत्र के स्वराज्य, कर्मवीर, असिधारा और दिलजला नामक विशेषांकों को लोग आज तक ढूंढते फिरते हैं। आपके योगी का आत्मचरित्र, पांतजलयोगसूत्रभाष्यम् आदि ग्रन्थ योगिजनों के अत्यन्त प्रिय हैं।
संन्यास दीक्षा
आप दिनांक १३ अप्रैल १९६८ ई० वैशाखी के शुभ पर्व पर स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती से संन्यास-आश्रम की दीक्षा लेकर स्वामी सच्चिदानन्द सरस्वती बन गए। आपने योग-विद्या के प्रचार के लिए योगधाम (ज्वालापुर) की स्थापना की। आजकल आपके ही शिष्य स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती (स्नातक-गुरुकुल झज्जर) इस योगधाम का बड़ी श्रद्धा-भक्ति के साथ संचालन कर रहे हैं और समस्त भारत में योग-विद्या के प्रचार
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