________________
२१
भूमिका का अध्ययन किया । पं० हरनामदत्त भाष्याचार्य (जगाधरी निवासी) से सम्पूर्ण महाभाष्य पढ़ा।
काशी-निवास के समय स्वामी दर्शनानन्द (पं० कृपाराम शर्मा), पं० भीमसेन शर्मा और पं० आर्यमुनि आदि आर्य विद्वानों से आपकी मित्रता होगई थी। आपने वहां अष्टाध्यायी की काशिका नामक वृत्ति का सम्पादन किया था।
आपने १८९६ ई० में आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब द्वारा संचालित वैदिक आश्रम (उपदेशक श्रेणी) जालान्धर का प्रबन्ध तथा अध्यापन कार्य सम्भाला। १९०१ ई० में गुरुकुल कांगड़ी के प्रथम आचार्य बने । आप ही काशी के उद्भट विद्वान् पं० काशीनाथ को गुरुकुल कांगड़ी लाये। गुरुकुल-निवास काल में आपने अष्टाध्यायी पर एक संक्षिप्त व्याख्या लिखी। १९०७ में आपने स्वामी दर्शनानन्द द्वारा संचालित गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के आचार्य पद को सुशोभित किया। १९१५ ई० में आपने ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधा संन्यास आश्रम में प्रवेश कर स्वामी शुद्धबोध तीर्थ नाम पाया। ___ गुरुकुल कांगड़ी तथा गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के पुराने सुयोग्य स्नातक आपके ही शिष्य थे। पं० भीमसेन शास्त्री (कोटा) तथा पं० राजेन्द्रनाथ शास्त्री (नांगलोई) ने गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में आपसे ही अष्टाध्यायी और महाभाष्य का अध्ययन किया था। आपका १९९० आश्विन शु० ७ भौम (मंगलवार) (दि. १६ ।९ १९३३ ई०) को स्वर्गवास होगया।
६. आचार्य राजेन्द्रनाथ शास्त्री
(स्वामी सच्चिदानन्द सरस्वती) जन्म
आपका जन्म फाल्गुन संवत् १९६२ (दि० १० फरवरी १९०६) को ग्राम नांगलोई (दिल्ली) में एक वैश्य परिवार में हुआ। आपका पैतृक नाम राजालाल, माता का नाम यमुनादेवी और पिता का नाम मा० प्यारेलाल था। आपके पूज्य पिता दिल्ली के विद्यालयों में गणित के श्रेष्ठ अध्यापक माने जाते थे। शिक्षा
आपने १९२१ ई० में नेशनल यूनिवर्सिटी अलीगढ़ से मैट्रिक परीक्षा में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया। आप अंग्रेजी-पद्धति की शिक्षा को छोड़कर प्राचीन पद्धति से संस्कृतभाषा आदि के अध्ययन के लिए दयानन्द ब्राह्म महाविद्यालय लाहौर पहुंचे और वहां पं० विश्वबन्धु शास्त्री के आचार्यत्व में संस्कृतभाषा का अध्ययन आरम्भ किया। आप वहां की विद्या-भूषण परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। तत्पश्चात् पंजाब विश्वविद्यालय से शास्त्री परीक्षा भी उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर (उ०प्र०) में प्रविष्ट होकर गुरुवर श्री शुद्धबोध तीर्थ (पं० गंगादत्त शर्मा) से अष्टाध्यायी महाभाष्य, न्यायदर्शन और वेद-वेदांग का अध्ययन किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org