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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(इयङ्-उवङ्स्थानौ) इयङ् और उवङ् आदेश का स्थान रखनेवाले (स्त्री-आख्यौ) स्त्रीलिङ्ग (यू) ईकारान्त और ऊकारान्त शब्दों की (वा) विकल्प से (नदी) नदी संज्ञा होती है (आमि) आम् प्रत्यय के परे होने पर (अस्त्री) स्त्री शब्द को छोड़कर।
उदा०-ईकारान्त-(श्री) श्रियाम्। श्रीणाम्। ऊकारान्त। (5) ध्रुवाम्। भ्रूणाम्। स्त्री' शब्द का निषेध इसलिये किया है कि यहां नदी संज्ञा का निषेध न हो-स्त्रीणाम् ।
सिद्धि-(१) श्रियाम् । श्री+आम्। श्री+नुट्+आम्। श्री+न+आम्। श्रीणाम्।
यहां पक्ष में नदी संज्ञा होने से हस्वनद्यापो नुट्' (७।११५४) से 'आम्' प्रत्यय को नुट्’ आगम होता है।
___ इसी प्रकार 'श्रू' शब्द से 'आम्' प्रत्यय करने पर ध्रुवाम् और भ्रूणाम् शब्द सिद्ध होते हैं। स्त्री शब्द की नदी संज्ञा होने से 'स्त्रीणाम् रूप बनता है। डिति हस्वापि यू वा
(४) डिति ह्रस्वश्च।६। प०वि०-डिति ७१ ह्रस्व: १।१ च अव्ययपदम् । स०-ङ इत् यस्य स:-डित्, तस्मिन् डिति (बहुव्रीहि:)। अनु०-'यू स्त्र्याख्यौ नदी, इयडुवङ्स्थानौ वा, अस्त्री' इत्यनुवर्तते।
अन्वय:-ङिति स्त्र्याख्यौ ह्रस्वौ यू इयवङ्स्थानौ च यू वा नदी अस्त्री।
अर्थ:-डिति प्रत्यये परत: स्त्री-आख्यौ ह्रस्वौ इकारान्त-उकारान्तौ, इयङ्-उवङ्स्थानौ ईकारान्त-ऊकारान्तौ च शब्दौ विकल्पेन नदी-संज्ञको भवत:, स्त्रीशब्दं वर्जयित्वा।
उदा०-इकारान्त: (कृति:) कृत्यै। कृतये। उकारान्त:-(धेनुः) धेन्वे। धेनवे । ईकारान्त:-(श्री:) श्रियै। श्रिये। ऊकारान्त:-(भूः) भ्रुवै। ध्रुवे । अस्त्रीति किमर्थम् ? स्त्रियै ।
आर्यभाषा-अर्थ-(डिति) डित् प्रत्यय परे होने पर (स्त्री-आख्यौ) स्त्रीलिङ्ग (हस्व:) ह्रस्व (यु) इकारान्त और उकारान्त तथा (इयड्वस्थानौ) इयङ् और उवङ् का स्थान रखनेवाले (यू) ईकारान्त और ऊकारान्त शब्दों की (वा) विकल्प से (नदी) नदी संज्ञा होती है, (अस्त्री) स्त्री शब्द को छोड़कर।
__उदा०-इकारान्त-(कृति:) कृत्यै। कृतये। उकारान्त-(धेनु) धेन्वै। धेनवे। ईकारान्त-(श्री) श्रियै। श्रिये। ऊकारान्त-((5) ध्रुवै। ध्रुवे। 'अस्त्री' का ग्रहण इसलिये किया गया है कि यहां विकल्प से नदी संज्ञा न हो-स्त्रियै।
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