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________________ १६२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(क्रियाफले) क्रिया का फल (कभिप्राये) कता को अभिप्रेत होने पर (अपात्) अप उपसर्ग से परे (वद:) वद् धातु से (कतरि) कर्तृवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद होता है। उदा०-धनकामो न्यायमपवदते। धन की कामनावाला न्याय का खण्डन करता है। सिद्धि-अपवदते । अप+वद्+लट् । अप+वद्+शप+त। अप+व+अ+ते। अपवदते। यहां अप उपसर्ग से परे वद व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) धातु से लट् प्रत्यय और उसके स्थान में आत्मनेपद 'त' आदेश होता है। णिजन्तो धातुः णिचश्च ७४। प०वि०-णिच: ५।१ च अव्ययपदम्। अनु०-'कभिप्राये क्रियाफले' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-क्रियाफले कभिप्राये णिचश्च कर्तरि आत्मनेपदम्। अर्थ:-क्रियाफले कञभिप्राये सति णिजन्ताद् धातो: कर्तरि आत्मनेपदं भवति। उदा०-कटं कारयते । ओदनं पाचयते। आर्यभाषा-अर्थ-(क्रियाफले) क्रिया का फल (कत्रभिप्राये) कर्ता को अभिप्रेत होने पर (णिच:) णिजन्त धातु से (कर) कर्तवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद होता है। उदा०-कटं कारयते। वह अपने लिये चटाई बनवाता है। ओदनं पाचयते। वह अपने लिये भात पकवाता है। सिद्धि-कारयते। कृ+णिच् । कृ+इ। कार्+इ। कारि+लट् । कारि+शप्+त। कारे+अ+ते। कारयते। यहां डुकृञ् करणे' (त०उ०) धातु से प्रथम हेतुमति च' (३।१।२६) से मिच्' प्रत्यय और 'अचो मिति (७।२।११५) से कृ धातु को वृद्धि होकर णिजन्त कारि धातु से लट् प्रत्यय और उसके स्थान में आत्मनेपद त' आदेश होता है। । इसी प्रकार डुपचष् पाके' (भ्वा०उ०) धातु से-पाचयते। यहां पूर्ववत् णिच्' प्रत्यय करने पर पच् धातु को 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से वृद्धि होती है। यम उपरमे (दि०प०) __ समुदाभ्यो यमोऽग्रन्थे।७५। प०वि०-सम्-उद्-आङ्भ्य: ५।३ यम: ५।१ अग्रन्थे ७।१ । स०-सम् च उत् च आङ् च ते-समुदाङः, तेभ्य:-समुदाङ्भ्यः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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