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________________ प्रथमाध्यायस्य तृतीयः पादः १६३ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । न ग्रन्थ इति अग्रन्थः, तस्मिन्-अग्रन्थे (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-'कर्जभिप्राये क्रियाफले' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-कभिप्राये क्रियाफले समुदाङ्भ्यो यम: कर्तरि आत्मनेपदम्। अर्थ:-क्रियाफले कत्रभिप्राये सति सम्-उत्-आङ्भ्यः परस्माद् यम-धातो: कर्तरि आत्मनेपदं भवति। यदि ग्रन्थविषयक: प्रयोगो न भवति। उदा०-(सम्) व्रीहीन् संयच्छते। (उद:) भारम् उद्यच्छते। (आङ्) वस्त्रमायच्छते। आर्यभाषा-अर्थ-(क्रियाफले) क्रिया का फल (कभिप्राये) कर्ता को अभिप्रेत होने पर (समुदाङ्भ्यः ) सम्, उत् और आङ् उपसर्ग से परे (यम:) यम् धातु से (कतरि) कर्तृवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद होता है (अग्रन्थे) यदि वहां ग्रन्थविषयक प्रयोग न हो। उदा०-(सम्) व्रीहीन् संयच्छते। चावलों को इकट्ठा करते हैं। उत्-भारमुद्यच्छते। भार को उठाता है। आङ्-वस्त्रमायच्छते । वस्त्र को फैलाता है। सिद्धि-(१) संयच्छते । सम्+यम्+लट् । सम्+यम्+शप्+त । सम्+यच्छ्+अ+ते। संयच्छते। ____ यहां सम् उपसर्ग से परे ‘यम उपरमें' (दि०प०) धातु से लट् प्रत्यय करने पर उसके स्थान में आत्मनेपद त' आदेश होता है। इषुगमियमां छ:' (७।३।७७) से 'यम्' धातु के 'म्' को 'छ’ आदेश होता है। इसी प्रकार उत् और आपूर्वक यम्' धातु से-उद्यच्छते तथा आयच्छते। (२) आयच्छते। यहां 'आडो यमहन:' (१।३।२८) से आत्मनेपद सिद्ध था। सकर्मक से आत्मनेपद के लिये यह पुनर्वचन किया गया है। (३) ग्रन्थविषयक प्रयोग का निषेध इसलिये किया गया है कि यहां आत्मनेपद न हो-उद्यच्छति चिकित्सां वैद्यः । वैद्य चिकित्साशास्त्र को उठाता है। ज्ञा अवबोधने (क्रया०प०) व अनुपसर्गाज्ज्ञः ७६ । प०वि०-अनुपसर्गात् ५ ।१ ज्ञ: ५।१ । स०-न उपसर्गोऽनुपसर्गः, तस्मात्-अनुपसर्गात् (नञ्तत्पुरुष:)। अनु०-कभिप्राये क्रियाफले' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-कभिप्राय क्रियाफलेऽनुपसर्गाज्ज्ञ आत्मनेपदम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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