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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उत्तराधिकार-पत्र ( वसीयतनामा ) अपने शिष्य युगलकिशोर के नाम लिखकर रजिस्टर्ड करा दिया था। पं० युगलकिशोर दण्डी जी के प्रथम सुयोग्य शिष्य थे जो दण्डी जी के मथुरा-आगमन से लेकर उनके निर्वाण-काल तक अध्ययनपरायण तथा सेवापराण भी रहे । ये दण्डी जी के निर्वाण के उपरान्त गुरुवर की गद्दी पर बैठकर आजीवन अष्टाध्यायी आदि आर्ष ग्रन्थ पढ़ाते रहे । १६ अष्टाध्यायी के महान् प्रचारक पं० ब्रह्मदत्त जिज्ञासु पं० युगलकिशोर के शिष्य थे । आर्यजगत् के उद्भट विद्वान् व्याकरणशास्त्र का इतिहास आदि आकर ग्रन्थों के लेखक पं० युधिष्ठिर मीमांसक पूज्य जिज्ञासु जी के शिष्य थे । माननीय मीमांसक जी के शिष्य डॉ० विजयपाल जी आजकल पाणिनीय महाविद्यालय बहालगढ़ (सोनीपत) में अष्टाध्यायी आदि आर्ष ग्रन्थों के पठन-पाठन यज्ञ के ब्रह्मा हैं । ३. स्वामी दयानन्द सरस्वती बाल्यकाल मोरवी राज्य के टंकारा नामक ग्राम में श्री कृष्णलाल जी तिवारी के घर सम्वत् १८८१ मूल नक्षत्र में एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम मूलशंकर रखा गया । इनकी माता का नाम यशोदा बाई था। इनके पिता निष्ठावान् शैव भक्त थे । अतः दश वर्ष की आयु मूलशंकर से मूर्तिपूजा कराना आरम्भ कर दिया । १४वें वर्ष के आरम्भ में दिनांक २२ फरवरी १८३८ ई० गुरुवार को मूलशंकर ने शिवरात्रि का व्रत रखा। यह जागरण इनके पिता के बनाये हुए कुबेरनाथ के मन्दिर में किया गया। इस जागरण में चूहों को शिव - पिण्डी पर चढ़कर चावल खाते देखकर मूलशंकर की मूर्तिपूजा से आस्था उठ गई । गृहत्याग मूलशंकर का विवाह होने को ही था कि ये गृह- बन्धन से बचने के लिए और सच्चे शिव के दर्शन करने के लिए १८४६ ई० में लगभग २१ वर्ष की अवस्था में घर से निकल पड़े । योगिजनों की तलाश में फिरते रहे । सायला में ब्रह्मचारी बनकर शुद्ध चैतन्य नाम धराया । कार्तिक स्नान के शुभअवसर पर दिनांक ३ । ११ । १८४६ ई० को सिद्धपुर पहुंच गए। यहां इनके पिता जी ने इन्हें जा पकड़ा और इन्हें घर ले आये किन्तु ये चौथे दिन ही रात को फिर भाग गए। संन्यास दीक्षा मूलशंकर अनेक स्थानों पर विद्याग्रहण करते रहे और राजयोग भी सीखते रहे । १८४८ ई० में चाणोदकन्याली में स्वामी परमानन्द सरस्वती से संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी दयानन्द सरस्वती बन गए। १८५४ ई० के अन्त में हरद्वार - कुम्भ के मेले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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