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________________ प्रथमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १३१ अर्थ:-तिष्यपुनर्वस्वोर्नक्षत्रद्वन्द्वे कर्त्तव्ये बहुवचनस्य स्थाने नित्यं द्विवचनं भवति। उदितौ तिष्यपुनर्वसू दृश्येते। तिष्यो नाम एकं नक्षत्रम्, पुनर्वसू नाम द्वे नक्षत्रे। तत्र नक्षत्रद्वन्द्वे कर्तव्ये बहुत्वविवक्षायां बहुवचने प्राप्ते नित्यं द्विवचनं विधीयते। ____ आर्यभाषा-अर्थ-(तिष्य-पुनर्वस्वो:) तिष्य और पुनर्वसु शब्दों के (नक्षत्रद्वन्द्वे) नक्षत्रविषयक द्वन्द्व समास में (बहुवचनस्य) बहुवचन के स्थान में (नित्यम्) सदा (द्विवचनम्) द्विवचन होता है। __उदा०-(द्विवचन) उदितौ तिष्यपुनर्वसू दृश्येते । उदित हुये तिष्य और पुनर्वसु नक्षत्र दिखाई दे रहे हैं। सिद्धि-(१) तिष्यपुनर्वसू । तिष्यश्च पुनर्वसू च ते-तिष्यपुनर्वसू। (द्वन्द्वसमास) यहां तिष्य एक नक्षत्र है और पुनर्वसु दो नक्षत्र हैं। इनके द्वन्द्व समास में बहुत्व विवक्षा में बहुवचन होना चाहिये किन्तु इस सूत्र से वहां नित्य द्विवचन का ही विधान किया गया है। एकशेषप्रकरणम् एकशेषः सरूपाणाम् (१) सरूपाणामेकशेष एकविभक्तौ।६४। प०वि०-सरूपाणाम् ६।३ एकशेष: १।१ एकविभक्तौ ७।१। स०-समानं रूपं येषां ते-सरूपा:, तेषाम्-सरूपाणाम (बहुव्रीहि:) एकस्य शेष इति एकशेष: (षष्ठीतत्पुरुष:)। एका चासौ विभक्तिश्चेति एकविभक्तिः, तस्याम्-एकविभक्तौ (कर्मधारयः) ___अन्वयः-सरूपाणामेकविभक्तावेकशेषः । अर्थ:-सरूपाणां शब्दानामेकविभक्तौ परत एकशेषो भवति, एक: शिष्यते; अन्ये निवर्तन्ते। उदा०-वृक्षश्च वृक्षश्च तौ-वृक्षौ । वृक्षश्च वृक्षश्च वृक्षश्च ते-वृक्षाः । आर्यभाषा-अर्थ-(एकविभक्तौ) समान विभक्ति में विद्यमान (सरूपाणाम्) एकरूपवाले शब्दों में (एकशेष:) एक शब्द शेष रहता है, अन्य निवृत्त हो जाते हैं। उदा०-वृक्षश्च वृक्षश्च तौ वृक्षौ। दो वृक्ष। वृक्षश्च वृक्षश्च वृक्षश्च ते वृक्षाः । सब वृक्ष। विशेष-प्रत्येक अर्थ में शब्द का निवेश आवश्यक होने से एक शब्द से अनेक अर्थों का कथन नहीं किया जा सकता, और चाहते हैं कि एक शब्द से अनेक अर्थों का कथन किया जा सके। इसलिये यहां एकशेष प्रकरण का आरम्भ किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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