SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यूना सह गोत्रं शेष: (२) वृद्धो यूना तल्लक्षणश्चेदेव विशेषः।६५ । प०वि०-वृद्ध: ११ यूना ३१ तल्लक्षण१।१ चेत् अव्ययपदम्, एव अव्ययपदम्, विशेष: १।१।। स०-स: (गोत्रप्रत्ययः, युवप्रत्ययश्च) लक्षणम् निमित्तं यस्य स:-तल्लक्षण: (बहुव्रीहि:)। अनु०-'शेष:' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-वृद्धो यूना सह शेष:, तल्लक्षणश्चेदेव विशेषः ।. अर्थ:-वृद्ध: गोत्रप्रत्ययान्त: शब्द:, यूना-युवप्रत्ययान्तेन शब्देन सह शिष्यते, तत्र यदि तल्लक्षण:-गोत्रप्रत्ययलक्षणो युवप्रत्ययलक्षश्चैव विशेषो भवति। वृद्ध इति पूर्वाचार्याणां गोत्रस्य संज्ञा । उदा०-गार्ग्यश्च गाायणश्च तौ-गाग्र्यो । वात्स्यश्च वात्स्यायनश्च तौ-वात्स्यौ। आर्यभाषा-अर्थ-(यूना) युवप्रत्ययान्त शब्द के साथ (वृद्धः) गोत्रप्रत्ययान्त शब्द (शेष:) शेष रहता है (चेत्) यदि वहां (तत्-लक्षण:) युवा और गोत्र प्रत्यय को बतलानेवाली (एव) ही (विशेष:) विशेषता हो। वृद्ध' यह पूर्वाचार्यो की गोत्र की संज्ञा है। उदा०-गार्यश्च गायर्यायणश्च तौ गाग्यौँ । गाये और उसका पुत्र गाायण, दोनों। वात्स्यश्च वात्स्यानश्च तौ वात्स्यौ। वात्स्य और उसका पुत्र वात्स्यायन, दोनों। सिद्धि-(१) गाग्र्यो । गाये+गाायण+औ। गाग्र्यो । यहां गाये' शब्द में गर्गदिभ्यो यज्ञ (४।१।१०५) से गोत्रापत्य अर्थ में यञ् प्रत्यय है और तत्पश्चात् गार्ग्य शब्द से यजिञोश्च' (४।१।१०१) से युवापत्य अर्थ में फक् प्रत्यय है। गार्ग्य और गाायण को एक साथ कहने में गोत्रप्रत्ययान्त 'गार्ग्य' शब्द शेष रह जाता है और युवप्रत्ययान्त गाायण शब्द निवृत्त हो जाता है-गाग्र्यो। गोत्रं स्त्रीशेषस्तस्याः पुंवद्भावश्च (३) स्त्री पुंवच्च।६६। प०वि०-स्त्री १।१ पुंवत् अव्ययपदम्, च अव्ययपदम्। पुंसा तुल्यमिति पुंवत् (तद्धितवृत्ति:)। अनु०-'शेष:, वृद्धो यूना तल्लक्षणश्चेदेव विशेषः' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-वृद्धा स्त्री यूना सह शेष: पुंवच्च, तल्लक्षणश्चेदेव विशेषः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy