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________________ ११४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् है। यहां 'झलां जशोऽन्ते' (८।२।३९) से पदान्त ज्' को 'ग्' तथा वाऽवसाने (८।४।५६) से 'ग्' को चर् 'क्' होता है। कर्मधारयसंज्ञा (१) तत्पुरुषः समानाधिकरणः कर्मधारयः।४२। प०वि०-तत्पुरुष: १।१ समानाधिकरण: ११ कर्मधारय: १।१। स०-समानम् अधिकरणं यस्य स:-समानाधिकरण: (बहुव्रीहि:)। अन्वय:-समानाधिकरणस्तत्पुरुष: समास: कर्मधारयसंज्ञको भवति। उदा०-परमं च तद् राज्यं चेति-परमराज्यम्। उत्तमं च तद् राज्यं चेति-उत्तमराज्यम्। आर्यभाषा-अर्थ-(समानाधिकरण:) समान अभिधेयवाले (तत्पुरुषः) तत्पुरुष समास की (कर्मधारयः) कर्मधारय संज्ञा होती है। यहां अधिकरण शब्द अभिधेय अर्थ का वाचक है। उदा०-परमं च तद् राज्यं चेति परमराज्यम्। बड़ा राज्य। उत्तमं च तद् राज्य चेति उत्तमराज्यम् । श्रेष्ठ राज्य । सिद्धि-(१) परमराज्यम्। यहां 'राज्य' शब्द कर्मधारय समास में है। अत: 'अकर्मधारयेराज्यम्' (६।२।१३०) से उत्तरपद में आधुदात्त स्वर नहीं होता है। इसी प्रकार से उत्तम राज्यम्। (२) यहां परमराज्यम्' पद के परम और राज्य दोनों पदों का अधिकरण अभिधेय वाच्यार्थ समाने एक है। अत: यहां समानाधिकरण है। जहां समानाधिकरण होता है वहां समान लिग, समान वचन और समान ही विभक्ति होती है। उपसर्जनसंज्ञा (१) प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम्।४३। प०वि०-प्रथमानिर्दिष्टम् ११ समासे ७१ उपसर्जनम् १।१ । स०-प्रथमया निर्दिष्टम् इति प्रथमानिर्दिष्टम् (तृतीयातत्पुरुषः)। अन्वय:-समासे प्रथमानिर्दिष्टमुपसर्जनम्। अर्थ:-समासे समासप्रकरणे प्रथमया विभक्त्या निर्दिष्टं पदम् उपसर्जनसंज्ञकं भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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