SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-'एकश्रुति' इत्यनुवर्तते। अन्वयः-संहितायां स्वरिताद् अनुदात्तानामेकश्रुति । अर्थ:-संहितायां विषये स्वरितात् परेषाम् अनुदात्तानामेकश्रुति भवति । उदा०-इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वति शुतुद्रि (ऋ० १० १७५ ।५)। माणवक जटिलकाध्यापक क्व गमिष्यसि ? । आर्यभाषा-अर्थ-(संहितायाम्) संहिता विषय में (स्वरितात्) स्वरित स्वर से परे (अनुदात्तानाम्) अनुदात्त स्वरों के स्थान में (एकश्रुति) एकश्रुति स्वर होता है। उदा०- उदा०-इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वति शुतुद्रि (ऋ० १० १७५ ।५) । माणवक जटिलकाध्यापक क्व गमिष्यसि ? सिद्धि-(१) इमं मे०। यहां इमम्' यह आन्तोदात्त पद है। मे' यह अनुदात्त पद है। यहां उदात्तादनुदात्तस्य स्वरित:' (८।४।६६) से स्वरित हो जाता है। इस स्वरित से परे इस सूत्र से गङ्गे आदि अनुदात्त पदों में एकश्रुति स्वर होता है। (२) माणवक जटिलकाध्यापक०। यहां प्रथम आमन्त्रित 'माणवक' शब्द 'आमन्त्रितस्य च' (६।१।१९८) से आधुदात्त, 'अनुदात्तं पदमेकवर्जम् (६।१।१५८) से उसके प्रथम अक्षर को छोड़कर सब अनुदात्त हो जाता है। उदात्तादनुदात्तस्य स्वरित:' (८।४।६६) से स्वरित करने पर परवर्ती अनुदात्त स्वरों के स्थान में एकश्रुति स्वर होता है। अनुदात्ततर: (१२) उदात्तस्वरितपरस्य सन्नतरः।४०। प०वि०-उदात्त-स्वरितपरस्य ६१ सन्नतर: ११ । स०-उदात्तश्च स्वरितश्च तौ-उदात्तस्वरितौ, परश्च परश्च तौ-परौ, उदात्तस्वरितौ परौ यस्मात् स:-उदात्तस्वरितपर:, तस्य-उदात्तस्वरितपरस्य (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहिः)। अनु०-अनुदात्तानाम् इत्यनुवर्तते । अन्वय:-उदात्तस्वरितपरस्यानुदात्तस्य सन्नतरः । अर्थ:-उदात्तपरस्य स्वरितपरस्य चाऽनुदात्तस्य स्थाने सन्नतर:= अनुदात्ततर आदेशो भवति। उदा०-(उदात्तपरस्य) देवा मरुत: पृश्निमातरोऽप: । इमं मे सरस्वति शुतुद्रि। (स्वरितपरस्य) अध्यापक क्व'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy