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________________ प्रथमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १०१ क्त्वा-लिखित्वा, लेखित्वा । लिखकर । सन्-लिलिखिषति, लिलेखिषति । लिखना चाहता है। सिद्धि-(१) द्युतित्वा । द्युत्+क्त्वा। द्युत्+इट्+त्वा। युतित्वा+सु। द्युतित्वा। ____ यहां 'द्युत दीप्तौ (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् क्त्वा' प्रत्यय और 'इट्' का आगम करने पर, क्त्वा' प्रत्यय को कित् मानकर 'पुगन्तलघूपधस्य च (७।३।८६) से प्राप्त गुण का विडति च' (११५) से निषेध हो जाता है। दूसरे पक्ष में 'क्त्वा' प्रत्यय को कित् न मानने से द्युत् धातु को प्राप्त लघूपध गुण हो जाता है-द्योतित्वा। इसी प्रकार लिख अक्षरविन्यासे (तु०प०) धातु से लिखित्वा और लेखित्वा शब्द सिद्ध करें। (२) दिद्युतिषते। द्युत+सन्। द्युत्+इट्+स। द्युत्+द्युत्+इ+स। द् इ उ त्+द्युत्+इ+स। दि+द्युत्+इ+ष। दिद्युतिष+लट् । दिद्योतिषते। ___यहां 'धुत् दीप्तौ' (भ्वा०प०) धातु से 'धातोः कर्मण: समानकर्तृ कादिच्छायां वा' (३।११७) से सन्' प्रत्यय, और पूर्ववत् 'इट' का आगम होने पर, 'सन्' प्रत्यय को कित् मानकर 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से द्युत् धातु को प्राप्त लघूपध गुण का विङति च' (१।१।५) से निषेध हो जाता है। दूसरे पक्ष में सन्' प्रत्यय को कित् न मानने से पुगन्तलघूपधस्य च' (७१३ १८६) से द्युत् धातु को लघूपध गुण हो जाता है-दिद्योतिषते। इसी प्रकार लिख अक्षरविन्यासे' (तुदादि०) धातु से लिलिखिषति और लिलेखिषति शब्द सिद्ध करें। हस्वदीर्घप्लुतसंज्ञाः (१) ऊकालोऽज् हस्वदीर्घप्लुतः।२७। प०वि०-उ-ऊ-उ३काल: १।१ अच् ११ ह्रस्वदीर्घप्लुत: १।१ । स०-उश्च ऊश्च ऊ३श्च ते-व:, तेषाम्-वाम् । वां काल इव कालो यस्य स:-ऊकाल: (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि:) ह्रस्वश्च दीर्घश्च प्लुतश्च एतेषां समाहार:-ह्रस्वदीर्घप्लुत: (समाहारद्वन्द्व:) समाहारे पुंस्त्वं छान्दसम्। अर्थ:-उ, ऊ, उ३ इत्येवं कालोऽच्, यथासंख्यं ह्रस्व-दीर्घ-प्लुतसंज्ञको भवति। उदा०-(उकाल:) दधि। मधु । (ऊकाल:) कुमारी। गौरी। (उ३काल:) देवदत्त३ अत्र न्वसि। आर्यभाषा-अर्थ-(उ-ऊ-उ३काल:) उ, ऊ और उ३ के काल के समान जिसका काल है, उस (अच्) स्वर की यथासंख्य (हस्व-दीर्घ-प्लुत) हस्व, दीर्घ और प्लुत संज्ञा होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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