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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
यहां 'रुदिर् अध्रुविमोचनें' (अ०५०) धातु से 'धातोः कर्मण: समानकर्तृकादिच्छायां वा' (३।१।७) से 'सन्' प्रत्यय, 'सन्यङो:' ( ६ | १1९ ) से धातु को द्विर्वचन, पूर्ववत् 'इद्' का आगम, ‘आदेशप्रत्यययो:' ( ८1३1५९) से 'सन्' के सकार को षत्व होता है।
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यहां 'सन्' प्रत्यय के किद्वत् होने से पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६ ) से प्राप्त लघूपध गुण का क्ङिति च (१1१14 ) से निषेध हो जाता है। इसी प्रकार 'विद ज्ञाने' आदि धातुओं से 'विविदिषति' आदि शब्द सिद्ध करें।
झलादिसन्प्रत्ययः
(५) इको झल् |६|
प०वि० - इकः ५ ।१ झल् १ । १ । अनु०- 'सन् कित्' इत्यनुवर्तते । अन्वयः - इको झल् सन् कित् ।
अर्थः-इगन्ताद् धातोः परो झलादिः सन्प्रत्ययः किद्वद् भवति । उदा०-(इ) चिचीषति। ( उ ) तुष्टृषति । (ऋ) चिकीर्षति । जिहीर्षति ।
आर्यभाषा - अर्थ - (इक: ) इगन्त धातु से परे (झल्) झल्-आदि (सन्) सन् प्रत्यय (कित्) किद्वत् होता है। इक् इ, उ, ऋ ।
उदा०
- (इ) चिचीषति । चुनना चाहता है। (उ) तुष्टृषति । स्तुति करना चाहता है। (ऋ) चिकीर्षति । करना चाहता है। जिहीर्षति । हरना चाहता है।
सिद्धि - (१) चिचीषति । चि+सन् । चि+चि+स | चि+ची+ष । चिचीष+लट् । चिचीष + शप् + तिप् । चिचीष+अ+ति । चिचीषति ।
यहां 'चिञ् चयने' (स्वा० उ० ) धातु से पूर्ववत् 'सन्' प्रत्यय तथा चि' धातु को द्विर्वचन करने पर 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७/३/८४) से चि' धातु को गुण प्राप्त होता है। उसका 'सन्' प्रत्यय के कित् होने से 'क्ङिति च ' (१1914 ) से निषेध हो
जाता है ।
इसी प्रकार ष्टुञ् स्तुतौं' (अ०3०) डुकृञ् करणे' (त० उ० ) 'हृञ् हरणें' (ध्वा०3०) धातु से तुष्ट्रषति आदि शब्द सिद्ध करें।
विशेष- प्रश्न- झल् आदि सन् किसे कहते हैं ?
उत्तर- शुद्ध सन् को झलादि सन् कहते हैं और सेट् ( इट् - सहित) सन् को अजादि सन् कहते हैं ।
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