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________________ [ 87 चण्डप्रद्योत एवम् उसके अनुयायी आदि के विषय में प्रागे हम विस्तार से कहेंगे। यहां इसलिए इतना ही कह देना उचित होगा कि जैन उस के जैन होने का ही दावा नहीं करते हैं अपितु यह भी मानते हैं कि "वह एक महान् राजा था जिसने कितने ही युद्ध विजय किए थे और अवन्ती. अंग तथा मगध के रान-कुदम्बों के साथ वैवाहिक सम्बन्धों से भी वह जुड़ा हुआ था।" चेटक की चौथी पुत्री शिवा अवन्ती या प्राचीन मालवा की राजधानी उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत को व्याही थी। यह चण्डप्रद्योत महासेन-भयंकर प्रद्योत, महान् सेना का अधिपति' और वंस अथवा वत्स देश की राजधानी कोसाम्बी के राजा उदायन के श्वसुर रूप से प्रसिद्ध है। डॉ. हिम डेविड्स कहता है कि "बुद्ध के समय में अवन्ती का राजा भयंकर प्रद्योत था जो कि उज्जैन में राज्य करता था। उसके सम्बन्धी दन्तकथा कहती है कि वह और उसका पड़ौसी कोसाम्बी का राजा उदेन समकालिक थे। वे वैवाहिक सम्बन्ध से भी जुड़े हुए थे और युद्ध भी दोनों ही ने किया था ।"" यह दंतकथा जैन माहित्य से सम्पूर्ण मिलती है। इन्हीं प्राधारों से हम जानते हैं कि वत्स राजा उदायन का विवाह वासवदत्त , अवन्ती के प्रद्योत की पुत्री से हुआ था । ग्राचार्य हेमचन्द्र कहते हैं कि चण्डप्रद्योत ने शतानीक से मगावती को उसके पास भेज देने का कहलाया था और उमके इन्कार करने पर उसने उसके ऊपर धावा बोल दिया था, इसी अरसे में शतानीक की मृत्यु हो गई और जब महावीर कोसाम्बी में पाए थे तव चण्डप्रद्योत ने उनकी प्रतिभा चौंधिया कर वैरवृत्ति छोड़, उदायन को कौसाम्बी का राजा बना देने का वचनबद्ध होकर, मृगावती को जैन साध्वी हो जाने की प्राज्ञा दे दी थी। "वत्ल का राजा यह उदायन प्रेम और साहसिक अनेक संस्कृत कथानों का महान चक्र का केन्द्र व्यक्ति है । उनमें अनुपम सुन्दरी वासवदत्ता के पिता उपजैन के राजा प्रद्योतना भी कुछ कम भाग नहीं है।" 10 जैसा कि अभी ऊपर कहा गया है उसने अवन्ती, अंग और मगध के राज-कुटम्बों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बांध लिया था । सम्पूर्णतः विश्वस्त यदि नहीं भी हों तो भी भिन्न-भिन्न प्रमाणों से हमें पता लगता है कि अवन्ती के राजा प्रद्योत की काया वासुलदत्ता हाथवा वासवदत्ता और मगध के राजा दर्शक की बहन पद्मावती एवम् अंग देश के राजा हर वर्मा की पुत्री उसकी रानियाँ थी। इनमें से वासवदत्ता उदायन की पटनी थी। बौद्ध एवं जैन दोनों ही 1. प्रधान, वही. प्र. 123 1 2. देखो अावश्यकसुत्र प्र. 677 ।। 3. देखो दे, वही, पृ. 209 । 4. देखो प्रधान, वही. प. 230 । 5. देवो रायचौधरी. वही, पृ. 83 । कौशाम्बी नगर या कोसम...उदायन के राज्य वंशदेश या वत्स देश की राजधानी थी। -दे, वही, प. 96। देखो वही, प. 28 1. 6. हिस डेविड्स, कैहिई, भाग I. 4. 185 । 7. देखो आवश्यकसूत्र पृ. 674: हेमचन्द्र, त्रिषष्टि-शलाका. पर्व 10, पृ. 142-145 ।। 8. 'अवन्ती मोटे तौर पर आधुनिक मालवा, नीमाड़ और मध्यप्रदेश के प्रास-पास के स्थानों तक फैला देश था । प्रो. भण्डारकर कहते हैं कि वह जनपद दो भागों में विभक्त था । उत्तरी भाग की राजधानी उज्जयिनी थी और दक्षिणी भाग को अवंती दक्षिणी पथ भी कहा जाता था, की राजधानी महासत्ती या महिष्यती थी जो कि नर्बदा नदी पर का ग्राधुनिक मान्धाता है।" -राय चौधरी, वही, प. 92 । 9. हेमचन्द्र. वही, श्लो 332, 4. 107 । 10. रेप्सन, कैहिई, भाग !, पृ. 3।।। देखो रायचौधरी, वही, पृ. 122; फर्जीटर, एशेंट हिस्टोरिकल ट्रेडीशन, पृ. 285 । 11.देखो राय चौधरी, वही और वहीं स्थान; प्रधान, वही, पृ. 211. 246 । "दन्तकथानों में उदन और उसकी तीनों रानियों के साहसों की लम्बी कहानी सुरक्षित हैं।" -ह्रिस डेविड्स, वही पृ. 187 । प्रधान. वही, पृ. 21 : 246 तकशों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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