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साहित्यों में अवन्ती के प्रद्योत की कन्या वासूलदत्ता कौसाम्बी के राजा उदेन की रानी अथवा उसकी तीन रानियों में से एक कैसे बनी इसकी अद्भुत और लम्बी कथा दी गई है।"1 धर्म के प्रति उनकी मनोवृत्ति के विषय में तो उसकी माता. बिंबमार, चेल्लगा एवं उसके अन्य सम्बन्धी जो उस समय जैनधर्म में अग्रणी थे, उमके ग्रादर्श थे। स्वभावतः ही इमलिए उसके मन में जैनधर्म के प्रति सम्मान और महानुभूति उत्पन्न हुए बिना रह नहीं सकती थी।
प्रवन्ति के प्रद्योत और उसकी पत्नि शिवा के जैन धर्म के प्रति ग्रादर के सम्बन्ध में ग्रा. हेमचन्द्र कहते हैं कि प्रद्योत को जैनधर्म के प्रति बहुत मान था और उसकी प्राज्ञा मिलने पर ही अंगारवती ग्रादि उसकी पाठ रानियां को साम्बी की मगावती के साथ जैन साध्वियां हो गई थी। सौवीर के उदायन के वर्णन में जैसा कि हम देख पाए है, प्रद्योत ने स्वयम् ही जाहिर किया था कि वह जैन है । यद्यपि बौद्ध और जैन दोनों ही इस अवंतीपति के अत्याचारों और धूर्तता से परिचित हैं. फिर भी इस विशेष प्रसंग में उसने अपने आपको किसी कारण विशेष से जैन असत्य ही कहा हो। ऐमा कुछ समझ में नहीं पाता है। यदि उसे भोजन के विषय में शंका थी तो किसी दूसरे बहाने से भी वह भोजन नहीं करने का कह सकता था। तथ्य जो भी हो फिर भी इतना तो स्पष्ट ही है कि इस विशेष प्रसंग का लक्ष्य इस या उस राजा के बुरे स्वभाव की छाप पटकने की अपेक्षा दुमरा ही है । मुख्य लक्ष्य यह मालूम देता है कि प्रद्योत का घोर शत्रु होने पर भी उदायन पयूषणा जैसे धार्मिक पवित्र दिनों में किसी को भी चाहे कोई जैन हो या अजैन, बंदी रूप में देखना नहीं चाहता था।'
इस प्रकार चेटक की सात पुत्रियों में से प्रभावती, पद्यावती, मगावती, शिवा और चेल्लगा अनुक्रम से सौवीर, अंग, वत्स (वंस), अवंती और मगध के राजों के साथ व्याही थीं। इनमें के अन्तिम चार देशों के नाम सोलह महाजनपदों की बौद्ध और जैन सूचियों में पाए हैं। परन्तु मौवीर देश के विषय में अधिक कुछ भी नहीं कहा जा सकता है । चेटक की शेष दो पुत्रियों में से ज्येष्ठा तो महावीर के बड़े भाई नन्दीवर्धन के साथ ब्याही थी। परन्तु सुज्येष्ठा महावीर की शिष्या जैन माध्वी हो गई थी। यह सब स्पष्ट ही बताना है कि वर्धमान का प्रभाव उसकी माता लिच्छवी राजकन्या त्रिशला के कारण ही फैला । इससे यह भी स्पष्ट है कि महावीर-काल में लिच्छवी क्षत्रिय हो माने जाते थे और उन्हें अपने उच्च कुल का अभिमान था और उनसे पूर्वी भारत के उच्च कालीन राजा लोग वैवाहिक संबंध जोड़ना अपने लिए गौरवान्वित मानते थे ।
1. देखो ह्रिस डेविड्स, बुद्धीस्ट इण्डिया, पृ. 4; अावश्यक सूत्र पृ. 674; हेमचन्द्र, वही, पृ. 142-145 । 2. मामी समोसळे...। तएणं से उदाय गे या...पंज्जुवासए । प्रादि-भगवती, सू. 442, पृ. 556 ।
महागृहलन्मगावत्या प्रवज्यां स्वामिसन्निधों।
अष्टावंगारवत्याद्याः प्रद्योतनपतेः प्रियाः ।। -हेमचन्द्र, वही, श्लो. 233, पृ. 107 । 4 देखो ह्रिस डेविड्स, वही और वही स्थान;...सो घुत्तो... पावश्यकसूत्र, पृ. 300; भण्डारकर, वही और वही __ स्थान;...-कल्पसूत्र, सुबोधिका-टीका, सूत्र 59, पृ. 192 । 5. देखो अावश्यकसूत्र, पृ. 300; मेयेयर जे. जे., वही, पृ. 110-111, कल्पसूत्र, सुबोधिका-टिका, सूत्र 59,
पृ. 192। 6. देखो रायचौधरी, वही, पृ. 59-60 । 7. देखो प्रावश्यकसूत्र, पृ. 677; हेमचन्द्र वही; श्लो. 192, पृ. 77 । 8. देखो आवश्यकसूत्र, पृ. 685; हेमचन्द्र, वही, श्लो. 266, पृ. 80 ।
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