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________________ 85 कर एक कोटड़ी में बन्द कर दिया। इसी बंदी अवस्था में एक बार उसने महावीर को अपने ग्राहार में से हो ग्राहार दिया था और अन्त में वह उनकी साध्वी बन गई थी।' चेटक की तीसरी पुत्री मृगावती थी। परन्तु इसका विचार करने के पूर्व जैन इतिहास की दृष्टि में चम्पा के विषय में कुछ कहना अप्रासंगिर नहीं होगा। अभी यह नगर भागलपुर के निकट थोड़ी ही दूर पर है और इसका उल्लख चंग पूरी, चंपानगर, मालिनी और चंपामालिनी ग्रादि नामों से मिलता है। जैन इतिहास में इसकी उपयोगिता स्वयम् सिद्ध है क्योंकि हमें पता है कि महावीर ने अंग की राजधानी चंपा और उसके उपनगर पृष्ठ चंपा में चतुर्मास बिताए थे फिर जनों के बारहवें तीर्थंकर श्रीवासु पुज्य की जन्म और निर्वाण भूमि भी यही कही जाती है। चंदना और उसके पिता के मुख्य नगर पौर जैनधर्म के प्रमुख केन्द्र के रूप में भी यह जैनों में प्रख्यान है। यहां दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के वासुपूज्य एवम् अन्य तीर्थंकरों की मुल मूर्ति सहित प्राचीन और अर्वाचीन मंदिर वहां देखे जाते हैं। उवामगदमानो और अंतगडदसानो में उल्लेख है कि महावीर के निर्वाण पश्चात् उनके ग्यारह गणधरों में से एक मुधर्म के समय में चम्पा में पूर्णभद्र नाम का एक चैत्य था।' 'जैन सम्प्रदाय के युगप्रधानाचार्य श्री सुधर्मास्वामी, कुणिक प्रजातशत्रु के समय में चम्पा में ग्राए थे तब नगर के बाहर उनके निवास स्थान पर दर्शन करने के लिए कुगिणक नंगे पांव पहुंचा था। सुधर्मा के अनुगामी जम्बू और उनके अनुगामी प्रभा, उनके अनुगामी शयंभव भी इस नगर में रहे थे और इमी में भयंभव ने पवित्र जैनमिद्धानों का सार रूप दस-अध्ययनवाला दशवकालिकसूत्र रचा था । 'बिवमार के मृत्योपरान्त, रिणक-ग्रजातशत्र ने चम्पा को ही अपनी राजधानी बना लिया था। परन्तु उसकी मृत्योपरान्त उसके पूत्र उदायी ने अपनी राजधानी पाटलीपूत्र में बदल ली थी।" चंपक-श्रेष्ठि-कथा नाम के जैन ग्रन्थ से मालूम होता है कि यह नगर बहुत ही समृद्ध था। इसकी प्रारम्भ की पंक्तियों में यहां की जानियों और धन्धों के नाम पाते हैं । यहां सुगन्धी द्रव्य विक्रक, मसाले-विक्रक, शक्कर विक्रक जौहरी, चर्मकार (कमानेवाले), हार बनानेवाले, सुतार, बुनकर और धोबी थे।' ।. देखो कल्पसूत्र, सुवोधिका-टीका, मूत्र 118, पृ. 106-107 । देखो अावश्यकमुत्र, 22 3-225%; हेमचन्द्र . वहीं, पृ. 59-62; चन्दना के विशेष विवरण के लिए देखो बारन्यैट, वही, पृ. 98-100, 102, 106 । 2. देखो दे, दी ज्योग्राफिकल डिक्षनेरी प्रॉफ एजेंट एण्ड मंडोवल इण्डिया, पृ. 44: कनिधम, वही, पृ. 546-5 722-723 । आज भागलपुर के पास, गंगा नदी पर का चंपापुर का गांव ही यह है । प्राचीन काल में प्राधुनिक भागलपुर जिला जिसे कहते हैं उसी को अंग देश कहा जाता था और यह चंपा उम देश की राजधानी थी। 3. दे वही, पृ. 44-45 । 'अजमेर के किसी प्राचीन जैन मन्दिर के पडोस से उत्खनित कुछ जैन मूर्तियों के लवान यह पता लगता है कि ये मूर्तियां वासुपूज्य. मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ गौर वर्धमान की 13 वीं सदी ईमवी ने प्रतिष्ठित हुई थी याने वि सं, 1239 से 1247 तक में ।' वही, प. 45; देखो बगाल एशियाटिक मोमाइटी पत्रिका, भाग 7, पृ. 52 । 4. हरनोली, वही, भाग 2, पृ. 2 टिप्पण । 'नि:संदेह, जम्बू उन दिनों में...चम्पा नामक एक नगर था...पूर्णभद्र चैत्य...वारन्यैट, वही, पृ. 97-98, 100 । देखो वही और वही स्थान । 5. दे, वही और वही स्थान । अन्यदाश्रीगणधर: सुधर्मा...। जगाम चंपा...॥ तदा...करिणकः...त्यक्तपादुको...। सषमस्वामिनं दृष्टवादरादपि नमो करोडा हेमचन्द्र. परिशिष्टपर्वन, सर्ग 4. श्लो. 1. 9. 33, 351 6. वही सर्ग 6, श्लो. 21 प्रादि। 7. दे, वही और वही स्थान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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