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________________ 84 ] दी गई तो उसने कहा कि मैं जानता हूं कि वह धूर्त है परन्तु जहां तक वह मेरा बन्दी हैं, वहां तक मेरी पयूंपण भी पवित्र और मंगलकारी नहीं कही जा सकती है 1" अब पद्मावती के विषय में विचार करें। इसका विवाह जैनधर्म के एक समय के केन्द्र स्थान रूप से प्रसिद्ध नम्यानगरी के राजा दधिवाहन से हुवा था ।" ग्रावश्यकसूत्र की टीका में हरिभद्रसूरि स्पष्ट ही कहते हैं कि राजा दधिवाहन और रानी पद्मावती दोनों ही जैनधर्म के महान् उपासक थे। जैन इतिवृत्तों में चम्पा को जितना ऐतिहासिक महत्व दिया गया है उसको देखते हुए यह मानना प्रनुचित नहीं है कि दधिवाहन का सारा ही कुटुम्ब जैनधर्म के सिद्धान्तों में सक्रिय रस लेता था । " " जैन दन्तकथानुसार इसका समय ई. पूर्व छठी सदी है। उसकी पुत्री चन्दना ग्रथवा चन्दनबाला ने महावीर के केवलज्ञान प्राप्ति के बाद ही स्त्रियों में सबसे पहले जैन दीक्षा उनसे स्वीकार की थी ।"" जैन वर्णनात्मक और अन्य साहित्य महावीर की इस सर्व प्रथम साध्वी की कथा से भरा हुआ है । वर्धमान के समय की स्त्री साध्वियों पर धाविकाओं की प्रणी यही थी उसकी जीवनी से जुड़ी हुई राजनीति बात इस प्रकार है। । " जब कोसाम्बी के राजा शतानीक ने दधिवाहन की राजधानी चम्पा पर धावा बोला, चन्दना एक लुटेरे के हाथ पड़ गई परन्तु वह निरन्तर अपने व्रत का पालन करती ही रही थी ।"" रायचौधरी का यह वक्तव्य जैन कथानकों पर ही अवम्बित है और चन्दना की पूरी कथा संक्षेप में इस प्रकार है उनके पिता और राजा शतानीक में हुए युद्ध के समय में वह दुश्मन के किसी सैनिक के हाथ पहले पड़ गई। इसने उसे कोसाम्बी के सेठ धनावाह को बेच दिया पीर सेठ ने उसका नाम चन्दना रख दिया हालांकि पिता का रखा हुआ उसका नाम वसुमति था। कुछ ही दिनों बाद इस धनावह सेठ की पत्नि मुला उसमें डाह करने लगी और इसलिए उसने उसके केश काट 1. देखी भण्डारकर वहीं पर वही स्थान: मेरी पृ. 110-111 कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका. 50. 192 प्रजापतिः स भरतिग्रहमणुपोषितः ममापि माता-पितरी संपतो, यदि धावश्यक पु. 300 पायो दधिवाहनाय 2. दत्ता वहीं पृ. 676 677 देखो जे. जे. वही, पृ. 1221 3. देखो दे, वही, पृ. 44 दे. बंगाल एशियाटिक सोसाइटी पत्रिका, नई माला. सं. 10, 1914, पृ. 334 1 4. हरिभद्र कहते हैं कि राज्य का भार अपने पुत्र करकण्ड को सौंप. राजा और रानी दोनों ही ने जैनधर्म दीक्षा ले ले ली थी। पद्मावतीदेवी... दन्तपुरे प्रायरिणा मूले प्रत्रजिता, ग्रणि राज्यं दधिवाहनस्तस्मै दत्वा प्रव्रजितः, करकर्महालासना जात... - यावश्यक सूत्र पृ. 716, 717, 718 वही भी कहा जाता है कि कारकण्ड ने भी अपने पिता की तरह ही, ग्रन्न में दीक्षा ले ली थी। देखो वही, पृ. 719 । करकण्ड और उसके माता पितायों के सम्बन्ध की अधिक जानकारी के लिए मेवेर जे. जे. वही, पृ. 122-136 [त्याचार्य उत्तराध्ययनत्र शिवहिता. पू. 300-303, लक्ष्मीविलास उत्तराध्ययनदीषिका पु. 254-58 5. यी वही. पू. 69 देख दे, वही. पू. 321 रायचौधरी | 1 6. समरणस्स भगवो महावीरस्स ग्रज्जचंदाना मुक्खायां छत्तीस ग्रज्जिया साहसीग्रो... हुत्या । - कल्पसूत्र, सुवोधिका - टीका, सूत्र 133, पृ. 123 देखो दे, वही बी । 7. रारी वही पु. 69 देखो वहीं, पु. 84 "विवसार के राज्य में मिला लेने के कुछ वर्ष पूर्व ही पा को कोसाम्बी के राजा शतनीक राय ने अधिकार में लेकर नष्ट किया था ।" -प्रधान वही प. 214 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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