SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 821 वाले कुमारपाल राजा के चरित्र पर से हमें पता लगता है कि उसके कार्यकाल में वह एक जैन प्रतिमा। पाटण में लाया था कि जो " हुई थी।" अब उसके शासक सिंधु-गांधीर देश और उसके समय नगर के विषय में इतना ही कहना उदाय के विषय में ऐतिहासिक अनुमानों का विचार करें हालांकि वे बहुत ही कम है। डॉ. रावचोरी कहते हैं कि "लौकिक दन्तकथयों के जाल में ने ऐतिहासिक तत्व का निकाल पाना कठिन है ।" " फिर भी यह स्वीक. र करना ही उचित है कि बहुत थोड़े तथ्य ही ऐसे हैं कि जो जैन माहित्य में से मिल जाते है और जिनका इतिहासवेत्ताओं को ध्यान में लाना कुछ ग्रंश में उचित है। जैन साहित्य के अनुसार सौवीर देश के उदायन ने अपने पति पवती के चण्डप्रयोत राजा को लड़ाई में हराया था।" यह चण्डप्रद्योत एक ऐतिहासिक पुरुष है और इसके विषय में हम चेटक की चौथी पुत्री शिव के पति कि हैसियत से विस्तार के साथ पाने विचार करेंगे। फिर हम यह भी जानते हैं कि उदायन के पश्चात् उसका भान्जा केसी राजा हुआ था जिसके काल में वीनमय का सर्वश्रा नाश हो गया था ।" यह कहना कठिन है कि यह सब कपोलकल्पित ही है अथवा इसका यही कारण है कि हमें देश के इस महा भू-भाग के इतिहास का पता कोई भी नहीं लग रहा है हालांकि हम विश्वस्त प्रमाणों से यह जानते ही हैं कि एक समय वह भारतवर्ष के नव-वर्गों में का एक था । हां में चार्य के कथनानुसार उदायन के समय से वीतमय के खण्डहरों में पड़ी उदयन और उसकी रानी प्रभावती के जनधर्म के प्रति मुकाव के विषय में हमारे सामने विश्वरन जैन सिद्धांत शास्त्रों के प्रत्यक्ष और परोक्ष, सभी प्रकार के प्रमाण हैं जिन पर हम अपनी धारणा बांध सकते हैं। एक केसीकुमारेाए नगर पर की वर्षा गराई 1. अनहिल पट्टा, वीरावलपट्टण जिसे गुजरात में उत्तर का बड़ोदा कहा जाता है, वल्लभी के विनाश के बाद सं 802 - ई. 746 में वनराज या वंशराज द्वारा बसाया गया था। नगर के ग्रनहिज पाटण इसलिए कहा गया कि इसका स्थान एक गोवाल याने ग्रहोर द्वारा बताया गया था... हेमचन्द्र सुप्रसिद्ध वैयाकरण और कोशकार. अहिलवाड़ के राजा कुमारपाल (ई. 1142-1173) के दरबार में चमका था और उसका धर्मगुरु था। 84 वर्ष की आयु पाकर इसका देहान्त ई. 1172 में हुआ था कि जिस वर्ष कुमारपाल ने जैनधर्म स्वीकार किया था । परन्तु अन्य प्रमाणों से यदु धर्म परिवर्तन ई. 1159 में हुआ था। 8वीं सदी में वल्लभी के पतन पश्चात् अनहिलवाडपाटण गुजरात का मुख्यनगर हुआ और वह 15वीं सदी के ग्रन्त तक यह स्थान भोगता रहा था... - दे, वही, पू. 6 1 2. जयसिंहसूरि, कुमारपाल भूपाल चरित महाकाव्य, सर्ग 9, श्लो. 261, 265, 2661 3. उद्राने शिवते... तदेव प्रतिमा... मविष्यति भूगता राज कुमार वस्य... पुष्पेन... व 83, पृ. 158, 1601 संधु प्रतिमाविमंविध्यति । हेमचन्द वही क्लो. 20. 22, 1. . जब पज्जोय सामने श्राया तो चौधरी, वही, पृ. 123 | दन्तकथानुसार दोनों में यह युद्ध इसलिए हुआ था कि चण्डप्रद्योत उसकी एक दामी और एक जिनप्रतिमा सपहरण कर लाया था "इसलिए उसने पज्जोय के पास दूत भेज कर कहलाया कि "मुझे दासी की परवाह नहीं हैं, परन्तु वह मूर्ति उने बीटा दे।" परन्तु प्रयोत ने ऐसा नहीं किया...। उदायन ने तुरन्त दस राजायों को साथ लेकर उस पर प्राचा बोल दिया। उद्रायन ने उसे बंदी बना लिया ।" - मेयेर जे. जे. वही, पृ. 109, 5. उदायनो राजा...गत उज्जयिनों... प्रद्योतो...बद्धो । - वही. पृ. 298-299 619 "जब वह उड़ायन मरा तो र दबा पड़ा है। सेबर जे.जे. वही. पू. 118-1161 सूत्र 491 Jain Education International 110 देखो प्रावश्यकसूत्र, पृ. 299 भी । देखो हेमचन्द्र वही, क्लो. 508, पृ. 1561 देवते For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy