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________________ [81 निर्देश नहीं किया जा सकता है क्योंकि भिन्न भिन्न प्रमाणों के साधार पर भारत के उत्तर पश्चिम प्रथवा पश्चिमी प्रदेशों में इसका होना माना गया है । कनिंघम उसे 'खंभात की खाड़ी के ऊपर का ईडर या बदरी प्रान्त' होना कहता है ।" डा. सि डेविड्स नियम का कुछ कुछ समर्थन करता है और सोवीर को अपने नक्शे में काठियावाड़ के उत्तर में कच्छ की खाड़ी की ओर बताता है। एलबरूनी उसे मुलतान और झालावाड़ कहता है और श्री दे इस मत को स्वीकार करता है । " पक्षान्तर में जैन दन्तकथाए इसके विषय में ऐसा कहती हैं:- श्री अभयदेवसूरि भगवतीसूत्र की पनी टीका में इसकी व्याख्या यो करते हैं-मिथुनद्या प्रामन्नाः सोचीराः जनपदविशेषाः सिधुमोवीरस्तेपु ... विगता ईतयोमयानि च यतस्तद्वीतिमयं विदर्भीत केचित् । * उत्तराध्ययनसूत्र में से श्री मेयर की अनूदित्त उदायन की कथा में वीतमय के लिए इस प्रकार लिखा है"सिंधु और मौवीर के प्रदेशों में को वीतमय नगर में उदायन नाम का राजा था... 1 "शत्रु'जय माहात्म्य उसको सिंधु या सिंध में बताता है ।" " इन सब अनुमानों से ऐसा लगता है कि वह प्रदेश मालवा की उत्तर-पश्चिम के राजपूताना और सिंधु नदी के पूर्व-तट पर आए निघ के विभाग से बहुत कुछ मिलता हुआ होगा । यह इससे भी सबूत होता है कि प्रवन्ती के राजा के विरुद्ध किए युद्ध में उदायन मारवाड़ और राजपूताना के रगों में होकर ही गया था जहां कि उसकी सेना प्यास से भरने लगी थी इन सब अनुमानों के अतिरिक्त भी हमें वराहमिहिर के दिए भारतवर्ष के विभागों में सिधु-सौवीर-देश के विजय में यह बात मिलती है कि जिन ती विभागों में देश तब बंटा हुआ था उनमें से ही यह एक था" इससे प्राप्त होने वाली ऐतिहासिक और भौगोलिक विशेषता कितने ही अंश में जैन ग्राधारों को प्रमाणिक ठहराती हैं कि जो यह कहती है कि वीतमय सहित उदायन अन्य 363 गांवों का राजा था।" फिर ई. 12 वीं सदी में होने 1. कनिंघम वही, पृ. 569 1 2. हिंग डेविड्ग, वृद्धीस्ट इण्डिया. पृ. 320 के सामने का नक्शा । 3. सजाउ, ग्रत्बनीज इण्डिया, भाग 1 पृ. 302 देखो दे, वही, पृ. 183 1 4. भगवती सूत्र 492, पृ. 326-321 1 5. मेयर, जे. जे. वही, पृ. 97। उत्तराध्ययन के कथानक के लिए देखी लक्ष्मीवल्लभ की दीपिका (सिह संस्करण ), पृ. 552-561 । 6. देखो दे, वही, पृ. 183 I है 7. उत्तरतां च म स्कन्धावारस्तूया ममारव्यावश्यक सूत्र पृ. 299 देखो मेसेर जे. जे. वही, पृ. 109 1 यहां यह भी कह देना चाहिए कि बौद्ध दन्तकथाओं के अनुसार, सौवीर की राजधानी रोरुक थी । देखो कैहिई. भाग 1, पृ. 173; दे, वही, पृ. 170 । कनिधम के अनुसार, रोहक सिंध का प्राचीन नगर प्रालोर ही भवतया था।" नियम वही पु. 700 -कनिंघम, 8. वराहमिहिर प्रत्येक खण्डको वर्ग कहता नो खण्डों में विभाजित हो गया है। 298-302; कनियम वहाँ पू. 6 परन्तु वराहमिहिर के इस वर्णन और उसकी पश्चिम में धान के साथ रखा गया है।" 9. बीतमयादिन रितुपतिप्रभुः हेमचन्द्र वही श्लो. 328, पृ. 147 "यह राजा उदावन सिधु-सौवीर को लेकर 16 देशों पर वीतमनगर को लेकर 363 नगरों का अधिपति था" मेयेर वही, पृ. 97 उसका कथन है कि उनसे (वर्गों से भारतवर्ष याने साधा संसार, केन्द्रवर्ग, पूर्वी वर्ग यादि आदि सवाउ, वही, पृ. 297 देखो वहीं, "इस योजनानुसार... सिंधु सौवीर को पश्चिम का प्रमुख जिला धा... विगत में कुछ अन्तर है क्योंकि विगत में सिंधु मोवीर को दक्षिण वही, पृ. 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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