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स्पष्ट पश्चात् जियों का संगठन हुआ होगा। इस प्रकार भारत की उत्क्रांति प्रीरा के प्राचीन नगरों की उत्क्रांति नुरूप ही हुई दीखती है जहां कि वीर युग की राजसत्ताएं प्रजासत्ताक के रूप में परिवर्तित हो गई थीं।' एक दूसरी दत्तस्था पर से भी यह कल्पना हो सकती है कि विदेह के यथः पतन के पश्चात् उसमें एक विभागलिच्छवी कहलाता हो । "
इस प्रकार त्रिशला राजकुमारी होते हुए भी विदेहदत्ता कही जाती हो तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविकता नहीं है। इस विशाल सम्बन्ध सिद्धार्थ के साथ हुआ था जो कि जैन मान्यतानुसार महावीर के पुरोगामी पा नाथ का धनुधायी था इसमे स्वाभाविक ही यह अनुमान हो सकता है कि या तो सिडी का राजवंश जैनधर्म पालना था प्रथवा मामाजिक परिस्थिति ऐसी थी की वह प्रपनी कन्या दूसरे जनवंश में दे सकता वा विशेष प्रसंग से यही फलित होता है कि लिच्छवियों को जैनों के लिए विशेष मान था परन्तु जैनों की साहित्य और ऐतिहासिक दन्तकथाएं ऐसे एक ही प्रसंग में समाप्त नहीं हो जाती हैं क्योंकि हम ग्रागे चलकर देखेंगे ही की राजा चेटक की सात कम्यायों में से सबसे छोटी पुत्री लगा जो वैदेही भी कहलाती थी मगध के महान
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विसारको व्याही जी धीर वे दोनों ही जैन थे।
बेल्ला के प्रतिरिक्त नेटक के छह पुत्रियां और थीं जिनमें से एक साध्वी बन गई थी और पांच भारत के एक या दूसरे राजवंश में स्पाही गई थीं। यह सध्य कितने प्रण में ऐतिहासिक माना जा सकता है हम कुछ भी नहीं कह सकते हैं। परन्तु आधुनिक खोजों के परिणाम स्वरूप लिच्छवियों के साथ सम्बन्ध रखनेवाले सब राजवंश सम्पूर्ण रूप से पहचाने जा सकें, ऐसे हैं। इन लिच्छवी राजकन्याओं के नाम इस प्रकार है:- प्रभावती, पद्मावती, मृगावती, शिवा. ज्येष्ठा, सुज्येष्ठा और वेल्लरणा ।
इनमें सब से बड़ी प्रभावती वीतमय नगर के राजा उदयन को व्याही थी जिसका उल्लेख जैन साहित्य में सिन्धु सोवीर देश की राजधानी रूप से किया गया है।" देश के किस भाग के लिए ये साहित्यिक उल्लेख हुए हैं
1. वही, पृ. 76
2. बौद्ध के समय में ही नहीं परन्तु उसके बाद भी कई सदियों तक वैशाली निवासी लिच्छवी कहलाते रहे थे और त्रिकांडकोश में लिच्छवी. विदेही श्रौर तिरमुक्ति पर्यायवाची हो कहे गए हैं। कनिघम, वही, पृ. 509 |
3. वेसालियो वेडग्रो... सत्त धूयाओ... ग्रावश्यक सूत्र, पृ. 676 ।
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4. बिसार के एक पुत्र का नाम पाली धर्मग्रन्थों में वंदेहीपुत्त प्रजातशत्रु और जैनागमों में कुणिक कहा गया है। बाद की दस्तकाओं में बौद्ध उसे कोसल देवी का पुत्र बताया गया है जबकि जैन दलकथा उसे पुत्र कहती है जिसका प्राचीन बौद्ध धर्मग्रन्थ विदेह राजकुमारी का पुत्र वेदेहीपुल कहते समर्थन करते हैं सि डेविड्स, केहि भाग 1, पृ. 183 1
देव्याख्या सामपराग्यदा नृपः । वीरं समवसरणस्थितं वन्दितु मन्यागात् ।
वन्दित्वा श्रीमदन्तं वलितो तो च दंपति । हेमचन्द्र, बही, ग्लो. 11-12.पु. 86 1 हेमचन्द्र, वही, श्लो. 187 पृ. 77 । नगरे... उदायणे नामं राया...तस
5, आवश्यक सूत्र, पृ. 676; 6. सिसोवीरे... बीतीमए
प्रभावती नाम देवी भगवती सूत्र 491. पृ. 618 | देखो धावश्यकसूत्र, पृ. 676; हेमचन्द्र, वही, श्लो. 190, पृ. 77; सिन्धुसोवीरदेशे म्ति पूरं बीमाध्यम् वही, श्लो. 327, पृ. 147; मेवेर, जे. जे. वही, पु. 97 1
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