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की कुण्डपुर या कुण्डग्री में विदेह के राजवंश की राजधानी वैशाली के मुख्य भाग के निवा और कुछ भी नहीं हो मकता है ।
महावीर और विदेहों के बीच उपस्थित प्रगाढ सम्बन्ध के इन सब उल्लेखों के अतिरिक्त भी जैन शास्त्रों की अन्य अनेक वातें इसका समर्थन करती हैं कि विदेही जैनधम में अच्छा रस लेते थे राज ज्योतिषी नाम के विषय में उत्तराध्ययनसूत्र कहता है कि
नमी नमेई अप्पारणं सक्खं सक्केण चोहयो।
चइऊण गेहं च वेदेहि सामण्णे पज्जुवटियो ।। अर्थात् नमि ने अपने को नम्र बना लिया, शक द्वारा प्रत्यक्ष में प्रार्थना किए जाने पर विदेह के इस राजा ने गृह का त्याग कर दिया और श्रमणत्व स्वीकार कर लिया ।"
. फिर कल्पसूत्र से भी हम जानते है कि विदेह की राजधानी मिथिला में महावीर ने छह चतुर्मास किए थे। यह बात प्रकट करती है कि महावीर का विदेहों के साथ गाढ़ मम्बन्ध था। संक्षेप में उनके विषय में जो कुछ भी हम जान पाए हैं इससे यह स्पष्ट है कि मारे ही नहीं तो विदेहियों का अमुक अंश तो जैनधर्म अवश्य ही पालता होगा।
लिच्छवियों का विचार करने पर हम देखते हैं कि ई. पूर्व छठी सदी में पूर्व भारत में वह एक महान् और शक्ति म्पन्न जाति थी। फिर यह भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि ज्ञातको के साथ वे भी महावीर के उपदेश के प्रभाव में अवश्य ही पाना चाहिए थे । उनकी माता त्रिशला क्षत्रियों की लिच्छवी जाति के वैशाली के राजा चेटक की बहन थी और पिता की अोर से महावीर स्वयम् ज्ञातृक थे।
यहां एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यदि त्रिशला लिच्छवी जाति की राजकुमारी थी तो उसको विदेहदत्ता नाम दिया जाना कुछ समझ में नहीं पाता है। इसका समाधान कदाचित यह हो सकता है कि विदेह के नाम से पहले से सुप्रसिद्ध प्रदेश को होने के कारण ही वह विदेह दिन्ना कही जाती होगी और जैसा कि हमने अभी देखा कि विदेह की राजधानी वैशाली थी। डॉ. रायचौधरी के शब्दों में कहें तो 'विदेह राजवंश के प्रधः पतन के
"इसलिग कुण्डग्रामविदेह की राजधानी वैशाली का एक उपनगर ही कदाचित था। यह कल्पना महावीर को वैमालिए ग वैमालिक नाम जो कि सूत्रकृतांग 1, 3 में उन्हें दिया गया है का समर्थन करता है। टीकाकार ने इस पाठ को दो प्रकार से समझाया है और एक अन्य स्थल पर इसकी तीसरी भी व्याख्या या अर्थ किया है ।...वैशालिक का सामान्यतः अर्थ वैशाली का निवासी ही होता है. और महावीर सच्चे अर्थ में वैसा कहा जा सकता था जब कि कुण्डग्राम वैशाली का ही एक उपनगर था। जैसा कि टनहम ग्रीन का निवासी नंदनी कहा जा सकती है ।" -याकोबी, वही और वही स्थान । 2. उत्तराध्ययन सूच, अध्या. 9. गाथा 61 । देखो वही, गाथा 62; अध्या, 18, गाथा 45 (याकोबी का अनुवाद,
सेबुई, पुस्त: 45, पृ. 41, 87)। नमि की दन्तकथा के पूर्ण विवरण के लिए देवो मेयर, जे.जे., हिन्दू टेल्स, प 147-169 । 3. याकोबी, कल्पसूत्र पृ. 113 1. 4. अनेक पण्डितों के अनुसार चेटक लिच्छवी था। परन्तु उसकी मांगनी के अन्य नाम (विदेहदता) और पुत्री (वेदही) संभवत: संकेत करते हैं कि वह वैसाली का निवासी हो जाने के कारण-विदेही था।' -रायचौधरी. वही, पृ. 78 टि. 2 ।
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